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216... सज्जन तप प्रवेशिका
लिए अणुव्रत के रूप में होते हैं और मुनियों के लिए महाव्रत कहे जाते हैं। गृहस्थ अहिंसादि व्रतों का आंशिक अनुपालन करता है, किन्तु मुनि यावज्जीवन सर्वांशतः परिपालन करते हैं।
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इस तप के प्रभाव से सर्वविरति चारित्र धर्म की प्राप्ति होती है । यह तप उत्कृष्ट धर्म की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इसकी निम्न विधि कही गयी है विधि इस तप में प्रत्येक महाव्रत के लिए एक-एक उपवास करें तथा प्रत्येक उपवास के पारणे में बियासना करें। इस प्रकार दस दिनों में यह तप पूर्ण होता है।
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उद्यापन
इस तप के अन्तिम दिन में सम्यक् चारित्र की विशिष्ट आराधना करें, चारित्र के उपकरण बनवायें और साधु-साध्वियों की भक्ति करें। सुविहित परम्परानुसार इस तप में साधु पद की आराधना करनी चाहिए
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जाप
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं 17. श्री पार्श्वगणधर तप
वर्तमान में भगवान पार्श्वनाथ का नाम सुप्रसिद्ध है, अत: उनकी आराधना के साथ-साथ उनके गणधरों के निमित्त भी तप किया जाता है। प्रभु पार्श्वनाथ के दस गणधर थे। यह तप उन्हें लक्ष्य में रखकर किया जाता है।
दिन
तप
दिन 16-17
तप
विधि - इस तप में दस छट्ठ (बेले) एकान्तर बियासना के पारणे से करें। इस प्रकार 20 उपवास और 10 पारणा कुल 30 दिनों में यह तप पूर्ण होता है। इसका यन्त्र न्यास इस प्रकार है :
तप दिन- 20, कुल दिन - 30
1-2
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बेला
बेला
༣
♡ F
पा.
साथिया खमा. कायो. माला
27
27
27
20
18 19-20 21
बेला पा.
पा.
4-5 6 7-8 9 10-11
बेला पा.
बेला पा.
22-23 24 25-26
बेला पा. बेला
12 13-14 15
बेला पा. बेला पा.
27 28-29 30 पा. बेला पा.