Book Title: Sajjan Tap Praveshika
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 320
________________ 258... सज्जन तप प्रवेशिका स्तवन (तर्ज : नयनों में आकर बसना पारस बेकरार है) मेरा एक ध्यान है, श्री चौबीसों भगवानोंका ही एक ध्यान है । । टेर ।। श्री ऋषभ अजित जिन नामी, संभव अभिनंदन स्वामी । सुमति पद्म सुपास है, चन्दा प्रभु वंदो भावे, मेरा ।।1।। सुविधि शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य विमल अवतंसा । अनन्त धर्म नाथ है, शान्ति ॐ शान्ति शान्ति, मेरा ।।2।। कुन्थु अर मल्लिनाथा, मुनिसुव्रत शिवपुर साथा । नमि अरिष्ट नेम है, पारस पावन रसधारी, मेरा ।13।। शासनपति गुण गंभीरा, श्री वर्द्धमान महावीरा । प्राणाधार सार है, तीर्थंकर तारणहार, वृष गज घोड़ा कपि जानो, है क्रोंच कमल स्वस्तिक स्वस्तिकार है, आगम के अनुसार, मेरा 11511 है चन्द्र मकर श्री वत्सा, खड्ग महिष प्रशस्ता । वराह स्येन वज्र है, मृग छाग नन्द्यावर्त, मेरा |16|| घट कूर्म नील कज शंखा, फणिसिंह सुलांछन चंगा । इनसे भान होत है, गुरु गम से यह सब जाना, मेरा ।।7।। अरिहंत सिद्ध पदधारी, गम आगम रूप अवतारी । मूर्त अमूर्त भाव है, प्रभु के पावन चरणों में, मेरा । 18 ।। दो श्वेत रक्त है दोनों, दो नील है काले दोनों । कंचम वर्ण सोलह है, वीश स्थानक तप से होते, मेरा ।।9।। हे 'सुखसागर' भगवाना, 'हरि' पूजित गुण परधाना । गुणबार आठ है, गुण और अनन्ते उनमें, मेरा ।।10।। सुकवीन्द्र 'कीर्ति' 'कीर्ति' गावे, आतम परमातम जय जयकार सार है, हैं भवसागर से दूर, मेरा ।।11।। • अब मुक्ताशुक्ति मुद्रा (सीप के समान पोली मुद्रा) में हाथ जोड़कर ‘जयवीयरायसूत्र बोलें। भावे । ART 11411 परमाणो । जयवीयराय जयवीयराय, जगगुरू, होउ ममं, तुह पभावओ, भयवं! भव निव्वओ, मग्गाणुसारिआ इट्ठफल सिद्धि लोगविरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ,

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