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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...165 तत्सम्बन्धी प्रामाणिक पाठ देखने को नहीं मिले हैं। ___1. वर्तमान सामाचारी के अनुसार एक पद की आराधना निमित्त 20 उपवास छह माह की अवधि में पूर्ण हो जाने चाहिए यानि एक ओली छह माह के भीतर पूर्ण कर लेनी चाहिए, अन्यथा उस ओली को पुन: से करने का जीतव्यवहार है। इस तरह दस वर्षों में बीस ओली की आराधना हो जानी चाहिए। ___ 2. प्रत्येक उपवास के दिन तीनों समय देववन्दन, उभय सन्ध्याओं में प्रतिक्रमण, निर्धारित संख्या में साथिया आदि यथावत करने चाहिए।
3. जन्म-मरण के सूतक, चैत्र-आसोज की शाश्वती ओली, क्षय-वृद्धि तिथि आदि दिनों में यह तप नहीं करना चाहिए। ____ उद्यापन – इस तप की एक-एक ओली अथवा युगपद् बीस ओली पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्र पूजा रचायें तथा ज्ञान-दर्शन-चारित्र के बीस-बीस उपकरण गृहस्थ एवं साधुओं को यथावश्यकता प्रदान करें। बीस ओली सम्पन्न होने पर साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें।
• आचार्य विहित परम्परानुसार इस तप के प्रत्येक पद की आराधना करते समय निम्न क्रियाएँ करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला । ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं
ॐ हीं नमो सिद्धाणं | ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं ॐ ह्रीं नमो थेराणं
ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं 7.| ॐ ही नमो लोए सव्वसाहणं
ॐ हीं नमो नाणस्स ॐ हीं नमो दंसणस्स ॐ ह्रीँ नमो विणय-संपन्नस्स ॐ ही नमो चारित्तस्स ॐ हौँ नमो बंभव्वयधारिणं
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