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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...173 आपत्तियों एवं विपत्तियों से भी रक्षा करता है। यह श्रावकों के करने योग्य अनागाढ़ तप है। विधिमार्गप्रपा आदि में वर्णित इसकी विधि इस प्रकार है
तहा एगेग-तित्थयर-मणुसरिय वीस-वीस-आयंबिलाणि । पारणय रहियाणि। एगं च आयंबिलं सासण-देवयाए ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 27 दमयन्ता प्रति जिनमाचाम्लान्येक विंशतिः । कृतानि संततान्येव, दमयन्तीतपो हि तत् ।।
आचारदिनकर, पृ. 366 इस तप में प्रत्येक तीर्थङ्कर को लक्ष्य में रखकर बीस-बीस तथा शासन देवता को लक्ष्य में रखकर एक-एक इस तरह निरन्तर इक्कीस-इक्कीस आयंबिल से एक-एक तीर्थङ्कर की उपासना करें। प्रत्येक तीर्थङ्कर के निमित्त 21-21 आयंबिल करने पर कुल 504 दिनों में यह तप पूर्ण होता है।
वर्तमानकाल की अपेक्षा आचार्य वर्धमानसूरि यह भी कहते हैं कि शक्ति न होने पर प्रत्येक तीर्थङ्कर के 21 आयंबिल करने के बाद पारणा भी कर सकते हैं। इस विधि से पारणे के 24 दिन मिलाने पर 528 दिनों में यह तप पूरा किया जाता है।
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर आयम्बिल की संख्या अनुसार 504504 विविध जाति के फल, पकवान एवं मुद्राएँ परमात्मा के समक्ष रखें। चौबीस तीर्थङ्करों के 24 तिलक चढ़ायें तथा साधर्मी भक्ति एवं संघ पूजा करें।
• दमयन्ती तप की सम्यक् आराधना हेतु इन दिनों में जिस तीर्थङ्कर का तप चल रहा हो, उस तीर्थङ्कर नाम के आगे 'सर्वज्ञाय नमः' जोड़ दें। जाप
साथिया खमा. कायो. माला श्री ऋषभदेव सर्वज्ञाय नमः 12 12 12 20
अथवा श्री शासनदेव्यै नमः 5. आयतिजनक तप
'आयति' शब्द का अर्थ है परवर्तीकाल और 'जनक' शब्द का अर्थ है उत्पन्न करने वाला। यह भविष्यकाल (कालान्तर) में शुभत्व को प्रदान करने वाला होने से इसे आयतिजनक तप कहते हैं। इस तप के करने से उत्तरकाल में