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198...सज्जन तप प्रवेशिका
4. दस प्रत्याख्यान तप
प्रत्याख्यान शब्द के दो अर्थ ध्वनित होते हैं। पहला निषेधवाचक और दूसरा प्रतिज्ञावाचक। जैसे 'आज उपवास का प्रत्याख्यान है' इस वाक्य से बोध होता है कि आज चारों प्रकार के आहार का त्याग है। जैसे 'तुम्हें रात्रिभोजन त्याग का प्रत्याख्यान ले लेना चाहिए' इस वाक्य में प्रत्याख्यान का अर्थ प्रतिज्ञा है। यहाँ प्रत्याख्यान शब्द निषेध एवं त्याग अर्थ में प्रयुक्त है।
जैन ग्रन्थों में काल सम्बन्धी दसविध प्रत्याख्यान की चर्चा की गयी है उनके नाम ये हैं - 1. नवकारसी 2. पौरुषी 3. पुरिमड्ड 4. एकासन 5. एकलठाणा 6. आयम्बिल 7. उपवास 8. चरिम 9. अभिग्रह और 10. नीवि।
यह तप इन्हीं दस प्रकार के प्रत्याख्यान से सम्बन्धित है। अर्वाचीन प्रतियों में इसकी निम्नोक्त दो विधियाँ प्राप्त होती हैं -
प्रथम विधि - इस तप में क्रमश: प्रथम दिन उपवास करें, दूसरे दिन एकासना करें, तीसरे दिन आयम्बिल-ठाम चौविहार पूर्वक करें, चौथे दिन नीवि करें, पाँचवें दिन एक कवल का एकासना-ठाम चौविहार पूर्वक करें, छठे दिन एकलठाणा करें, सातवें दिन एक दत्ति का आयम्बिल-ठाम चौविहार पूर्वक करें, आठवें दिन आयम्बिल करें, नौवें दिन एकासना मात्र ठाम चौविहार से करें तथा दसवें दिन खाखरा खाकर आयम्बिल करें। इस प्रकार यह तप निरन्तर दस दिन तक किया जाता है। इसे 'बड़ा दस प्रत्याख्यान तप' भी कहते हैं। ___ द्वितीय विधि - दूसरी विधि के अनुसार प्रथम दिन उपवास, दूसरे दिन एकासना, तीसरे दिन आयम्बिल, चौथे दिन एकासना, पाँचवें दिन नीवि, छठे दिन एक कवल, सातवें दिन खीर का एकासना, आठवें दिन नारियल (गिरि) का एकासना, नौवें दिन पात्र भरकर एकासना और दसवें दिन उपवास करें। इसे 'छोटा दस प्रत्याख्यान तप' कहते हैं।
उक्त दोनों प्रकारों में मुख्य अन्तर यह है कि प्रथम में दसों दिन के प्रत्याख्यान प्रायः ठाम चौविहार पूर्वक होते हैं जबकि दूसरे विकल्प में वैसा नहीं होता।
उद्यापन – इस तप के पूर्ण होने पर प्रभु की अष्टप्रकारी पूजा करें। प्रभु के सामने मोदक, फल आदि दस-दस की संख्या में चढ़ायें तथा ज्ञानपूजा करें।
. गीतार्थ परम्परानुसार दस प्रत्याख्यान-सम्बन्धी दोनों प्रकारों में निम्न जापादि करें