________________
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...123 आचार्य वर्धमानसूरि ने वर्तमान लोक प्रवाह की अपेक्षा एक वर्ष पर्यन्त तप करने का भी विधान किया है।
इस समय के प्रवाह के अनुसार भी मतान्तर यह है कि दीपावली की अमावस्या को छट्ठ (बेला) करें। फिर प्रत्येक पूर्णिमा तथा अमावस्या को बेला करें। इस प्रकार तेरह महीनों में 26 छट्ठ के 52 उपवास होते हैं।
उद्यापन - इसमें दीपावली की अमावस्या के दिन पट्ट पर नन्दीश्वर का चित्र बनाएँ। यथाशक्ति उसकी पूजा करें। तप उद्यापन के दिन बृहत्स्नात्र-विधि से परमात्मा की पूजा करके आलेखित नन्दीश्वर-द्वीप के आगे बावन-बावन विविध प्रकार के मोदक, पुष्पादि चढ़ायें। साधर्मीवात्सल्य, साधु-भक्ति एवं संघपूजा करें।
• प्रचलित विधि के अनुसार इस तप के दिनों में मुख्य रूप से अरिहन्त पद की आराधना करें तथा निम्न जाप का 2000 बार स्मरण करें। जाप
साथिया खमा. कायो. माला श्री नन्दीश्वरद्वीप तपसे मन: 12 12 12 20 24. माणिक्य प्रस्तारिका तप
मणि के प्रकाश की तरह इस तप का विस्तार होने से यह माणिक्य प्रस्तारिका तप कहलाता है। यह साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़ तप है। यह तप निर्मल गुणों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। जैसे माणक निर्मल होता है वैसे ही इस तप के द्वारा निर्मल भावों का उदय होता है।
आचारदिनकर के उल्लेखानुसार इसकी तप-विधि यह है - माणिक्य-प्रस्तारी आश्विन, शुक्लस्य पक्ष संयोगे। आरभ्यैकादशिकां राकां, यावद्विदध्याच्च ।।
आचारदिनकर, पृ. 356 - यह तप आश्विन शुक्ला एकादशी को प्रारम्भ कर पूर्णिमा तक पाँच दिनों में निम्न विधि से किया जाता है- एकादशी को उपवास, द्वादशी को एकासना, त्रयोदशी को नीवि, चतुर्दशी को आयंबिल और पूर्णिमा को बियासना करें अथवा एकादशी को उपवास, द्वादशी को आयंबिल, त्रयोदशी को नीवि, चतुर्दशी को एकासना और पूर्णिमा को बियासना करें।
इन पाँच दिनों में सूर्योदय से पहले स्नान कर सौभाग्यवती सुहागिन नारी का मुखमण्डन एवं उद्वर्तन करें। तत्पश्चात तपाराधक स्वयं भी पवित्र-सुन्दर