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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...147 फिर विपरीत क्रम से पन्द्रह दिन (पूर्णिमा) तक करें। इस तरह यवमध्य और वज्रमध्य दोनों परिपाटियों को पूर्ण करें। यह तप कुल दो महीने में पूर्ण होता है।
इस तप का यन्त्र न्यास इस प्रकार है - । तप दिन-60, यवमध्य में सूर्यायण तप, कृष्ण पक्ष में हानि । कृष्णतिथि | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 10 11 12 13 14 |30
15 14 13 |12|11 10/987654 | 3 | 2
ग्रास
L15
यवमध्य में सूर्यायण तप, शुक्ल पक्ष में वृद्धि शुक्ल तिथि 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 | ग्रास 123456789 10 11 12 13 14 15|
__ वज्रमध्य में सूर्यायण तप, कृष्ण पक्ष में हानि कृष्ण तिथि 1 2 3
89 10 11 12 13 14/30
ग्रास
5
11
9
V
वज्रमध्य में सूर्यायण तप, शुक्ल पक्ष में वृद्धि शुक्लतिथि 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 115 ग्रास 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
जाप
इस तप का उद्यापन चान्द्रायण तप की भाँति ही करें। • प्रचलित विधि के अनुसार इस तप में सिद्ध पद का जाप करें -
साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो सिद्धाणं 8 88 20 37. लोकनाली तप
यह विश्व 14 रज्जू परिमाण है। इसे चारों दिशाओं से परिवृत्त करने वाला