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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...153 कांगुमाणा 3, कोद्रवमाणा 3, उडदमाणा 5, तूवरिसेइ 4, जुवारिमाणा 5।
आचारदिनकर, पृ. 365 आचारदिनकर की विधि अनुसार इस तप के उद्यापन में परमात्मा की पूजा करें। तदनन्तर परमात्मा के आगे एक लाख परिमाण का धान्य निम्न प्रकार से चढ़ायें - . चावल – पाँच मण एक पाइली, मूंग - एक सई दो पाइली, मोठ -एक सइ दो पाइली, जव - दो सइ, तिल - सात पाइली, गेहूँ - आठ सइ, चवला - तीन सइ, चना – एक सइ, कांगु - (चावल की एक जाति) तीन मण, कोद्रव - तीन मण, उड़द - पाँच मण, तुअर - चार सइ, ज्वार – पाँच सइ। सइ लगभग 4 किलो और 500 ग्राम परिमाण होती है तथा पाइली 900 ग्राम की होती है।
• प्रचलित परम्परानुसार इस तप के दौरान सिद्धपद की आराधना करें।
जाप साथिया खमा. कायो.. माला ॐ नमो सिद्धाणं 8 8 8
20 42. अष्टापद पावड़ी तप
अष्टापद + पावड़ी अर्थात अष्टापद पर्वत पर आठ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं जिन्हें साधारण व्यक्ति पार नहीं कर सकता। तद्भव मोक्षगामी जीव ही इन आठ सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अष्टापद की यात्रा कर सकता है। उत्तराध्ययनसूत्र टीका में कहा गया है कि 'चरमसरीरी साहू आरूहइ नगवरे न अन्नति'- चरम शरीरी साधु ही अष्टापद पर्वत पर आरोहण कर सकता है, अन्य नहीं। कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' (10वें पर्व) में लिखा है कि- 'योऽष्टापदे जिनान् नत्वा, वसेद् रात्रिम् स सिध्यति' अर्थात जो अष्टापद पर विद्यमान जिन-बिम्बों को वन्दन करके वहीं एक रात्रि विश्राम करता है, वह अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करता है।
गणधर गौतमस्वामी स्वयं इसी भव में मोक्षगामी होने का निश्चय करने हेतु सूर्य रश्मियों का आलम्बन लेकर इस पर्वत पर चढ़े थे। वहाँ से लौटते वक्त उन्होंने पन्द्रह सौ तीन तापसों को प्रतिबोधित कर दीक्षा दी और उन सभी ने उसी दिन केवलज्ञान प्राप्त किया।
यह तपश्चरण अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिए किया जाता है, इसलिए