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158...सज्जन तप प्रवेशिका 'पतद्ग्रह' है। यहाँ पतद्ग्रह का अभिप्राय पात्र है।
यह श्रावक-श्राविकाओं के करने योग्य आगाढ़ तप है। यह तप दो प्रकार के किया जाता है। प्रथम प्रकार
एकासु पंचदशसु, स्वशक्तेरनुसारतः । तपः कार्यं गौतमस्य, पूजाकरणपूर्वकम् ।।
आचारदिनकर, पृ. 370 इस तप में प्रत्येक पूर्णिमा को यथाशक्ति उपवास या एकासना करके गौतमस्वामी मूर्ति की पूजा करें। इस प्रकार पन्द्रह पूर्णिमाओं तक करने पर यह तप पूर्ण होता है। इसमें पन्द्रह महीने लगते हैं।
द्वितीय प्रकार - तपसुधानिधि (पृ. 107) के अनुसार यह तप कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन से प्रारम्भ करें और एक वर्ष पर्यन्त प्रत्येक प्रतिपदा को उपवास आदि करें। इस तरह दूसरे विकल्प में 24 उपवासादि होते हैं।
उद्यापन - इस तप को प्रख्यात एवं आत्मस्थ करने हेतु उद्यापन दिन में महावीरस्वामी एवं गौतमस्वामी की बृहद्स्नात्र पूजा करें। चाँदी के पात्र में खीर भरकर झोली सहित मूर्तियों के समक्ष रखें तथा काष्ठमय पात्र में खीर भरकर झोली युक्त गुरु को प्रदान करें। उस दिन विशेष साधर्मीभक्ति एवं संघपूजा करें।
• प्रचलित सामाचारी के अनुसार इस तपस्या में साधु पद की आराधना करते हुए निम्न कायोत्सर्ग आदि करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला ॐ ह्रीँ श्री गौतमस्वामिने नमः 27 27 27 20 46. निर्वाणदीप (दीपावली) तप - यह तप भगवान महावीर के निर्वाण-कल्याणक से सम्बन्धित है। जब प्रभु वीर को निर्वाण (मोक्ष) हुआ उस समय अमावस्या की अर्धरात्रि होने से चारों
ओर गहन अन्धकार व्याप्त था, लेकिन प्रभु की अन्तिम देशना सुनने के लिए आये हुए नव मल्लवी और नव लिच्छवी कुल अठारह गणनायक राजाओं ने प्रभु के केवलज्ञान रूपी भाव प्रकाश का विरह होने के कारण द्रव्य प्रकाश किया अर्थात अनगिनत दीपक प्रगटाये। इस रात्रि में देवी-देवताओं ने भी निर्वाण