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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...125 कमल पर बैठी हुई दिखाई देती हैं। सामान्य मान्यतानुसार यह तप लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। यहाँ लक्ष्मी से तात्पर्य अनन्त चतुष्टय रूपी आत्मलक्ष्मी है।
यहाँ लक्ष्मी का वास स्थल होने के कारण ही पद्म को पद्मोत्तर (श्रेष्ठ कमल) कहा गया है। इस तप में आठ-आठ पंखुड़ियों वाले नौ पद्मों की कल्पना की गयी है। इस तप के माध्यम से प्रत्येक कमल की आठ पंखुड़ियों की गणनानुसार उपवास आदि किये जाते हैं। यह तप श्रमण एवं गृहस्थ दोनों के करने योग्य आगाढ़ तप है। ___ आचारदिनकर के निर्देशानुसार पद्मोत्तर तप की सामान्य विधि इस प्रकार है -
विधि
प्रत्येकं नव पोष्वष्टाष्ट प्रत्येक संख्यया। उपवासा मीलिताः स्युर्वासप्ततिरनुत्तराः ।।
आचारदिनकर, पृ. 356 किसी भी शुभ दिन में इस तप को प्रारम्भ करके प्रत्येक पद्म की आठआठ पंखुड़ियों के अनुसार उतने उपवास एकान्तर पारणा से करें। इस प्रकार नौ पद्यों के बहत्तर उपवास होते हैं और कुल 143 दिन में यह तप पूर्ण होता है। __ इस तप का यन्त्र न्यास इस प्रकार है