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94... सज्जन तप प्रवेशिका
इस प्रकार प्रत्येक तीर्थङ्कर के निमित्त पच्चीस-पच्चीस आयंबिल होने से कुल 600 आयंबिल होते हैं।
यह तप निरन्तर अथवा प्रत्येक तीर्थङ्कर की आराधना के पश्चात पारणा पूर्वक भी कर सकते हैं। यदि इस तप को निरन्तर करें तो इसमें 600 आयंबिल होते हैं जिसमें 1 वर्ष और 8 महीने लगते हैं तथा पारणा पूर्वक करने पर इस तप में 1 वर्ष, 9 महीने और 17 दिन लगते हैं।
दूसरी रीति
विधिमार्गप्रपा (पृ. 27) के अनुसार इस तप में पूर्वोक्त विधि से आयंबिल के स्थान पर नीवि करें।
आचार्य जिनप्रभसूरि ने ‘निव्वियाईणि' शब्द का उल्लेख कर आदि शब्द से एकाशना तप की ओर भी सूचित किया है। तदनुसार उनके अभिमत से यह तप आयंबिल या नीवि के स्थान पर एकाशना तप करके भी किया जा सकता है। किन्तु आचार्य वर्धमानसूरि ने इस तप में एकाशना करने का ही सूचन किया है तथा उस सम्बन्ध में भी दो प्रकार बतलाये हैं।
तीसरी रीति
ऋषभादेर्जिनसंख्यावृद्धया,
वीरादेरप्येवं. बलमानं वर्धमान
प्रत्येकाशन कानि
तावन्ति चैकभक्तानि ।
अथवैकैकमर्हतं, पंचविंशतिसंख्यानि,
तपः ।।1।।
च ।
षट्शताहेन पूर्यते ।।2।।
आचारदिनकर, पृ. 343
आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार इस तप में पूर्वोक्त विधि पूर्वक चौबीस तीर्थङ्करों के क्रम से एक-एक एकाशना बढ़ाते हुए चौबीस के अन्त तक पहुँचे। फिर पुनः से पश्चानुक्रम पूर्वक एक-एक एकाशना बढ़ाते हुए आदिनाथ भगवान के निमित्त चौबीस एकाशना करें।
इस प्रकार प्रत्येक तीर्थङ्कर के 25-25 एकाशना होने से कुल 600 एकाशना होते हैं।
चौथी रीति
आचारदिनकर (पृ. 343) के अनुसार इस तप में प्रत्येक तीर्थङ्कर के एक साथ पच्चीस-पच्चीस एकाशना पारणा पूर्वक किये जा सकते हैं। तदनुसार इस