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106...सज्जन तप प्रवेशिका
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मास जाप पद साथिया खमासमण कायो. | श्री आचारांग सूत्राय नमः श्री सुयगडांग सूत्राय नमः श्री ठाणांग सूत्राय नमः श्री समवायांग सूत्राय नमः श्री भगवती सूत्राय नमः श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्राय नमः || श्री उपासकदशांग सूत्राय नमः श्री अन्तकृद्दशांग सूत्राय नमः
श्री अनुत्तरोववाई सूत्राय नमः 10. | श्री प्रश्नव्याकरण सूत्राय नमः | 11. | श्री विपाक सूत्राय नमः | 11 | 13. द्वादशांग (बारह अंग) तप
यद्यपि बारहवाँ अंग व्युच्छिन्न हो चुका है फिर भी श्रुत रूप होने से भूत द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा आराध्य है। यह तप उसी दृष्टिकोण को लक्षित करके कहा गया है। __इस तप के माध्यम से भगवान महावीर के प्रथम उपदेश रूप द्वादशांग श्रुत का आराधन किया जाता है। इस तप के फल से अपूर्व श्रुत की प्राप्ति होती है तथा यह चेतना जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। इस तप की आराधना साधु एवं गृहस्थ उभय साधकों को करनी चाहिए।
इस तप साधना का निर्देश विधिमार्गप्रपा में ही प्राप्त होता है। तदनुसार इसकी सामान्य विधि यह है
एवं बारससु सुद्धबारसीसु, दुवाल सांगागहण तवो । उज्जवणे पुण बारस, गुणाणि वत्यूणि ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 28