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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...103
9-चातुर्मासी तप, 6-दो मासी तप, 12-मासक्षमण, 72-पक्षक्षमण तप, 1-छ:मासी तप, 2- त्रैमासिक तप, 2-ढ़ाईमासी तप, 2-डेढ़मासी तप, दो दिन की भद्रप्रतिमा, चार दिन की महाभद्र प्रतिमा, दस दिन की सर्वतोभद्र प्रतिमा, पाँच दिन कम छ:मासी तप, 12-अट्ठम (तेला) तथा अट्ठम की अन्तिम रात्रि में ध्यान पूर्वक प्रतिमा का वहन और 229-छट्ठ।
भगवान महावीर ने कभी नित्य आहार किया तो कभी निरन्तर उपवास करते रहे। साढ़े बारह वर्ष एवं पन्द्रह दिनों की अवधि में मात्र 349 दिन एक बार भोजन ग्रहण किया। इसी अवधि में भगवान ने अनेक बार उत्कट प्रतिमाएँ भी धारण की। भगवान के तपोसाधना की विरल विशेषता यह थी कि उन्होंने सभी तप निर्जल किये। ___ जो साधक इस तरह का यथावत तपो योग नहीं कर सकते हैं वे इतने तप परिमाण की आपूर्ति एकान्तर उपवास से करें। यदि वैसा भी सामर्थ्य न हो, तो इन तपों में से कोई भी तप यथाशक्ति और काल के अनुसार करें।
इस तप के यन्त्र का न्यास निम्न प्रकार है__चातुर्मासिक आदि सर्व तपों की उपवास संख्या के रूप में गणना
1080 60 | उ. | 120 | 348
hi
mi
hirii
उ.
| 45
| 360 | उ. | 60 | उ. | 120 | उ. | 16
45 | उ. | 60 | उ. | 120 | उ. | 1 उ. | 45 | उ. | 90 | उ. | 120 | (कुल दिन) उ. | 75 | उ. | 90 | उ. | 120 | 15 वर्ष, उ. | 75 | उ. | 120 | उ. | 180 | 12 मास, उ. | 60 | उ. | 120 | उ. | 175 | 6 दिन,
उ. | 60 | उ. | 120 | उ. | 458 | 15 एकान्तरै | उ. | 60 | उ. | 120 | उ. | 36 | पूर्यते इति।