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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...101 नाइनिविगओ अ छम्मासे, परम्मिअं च आयामं। अवरे विअ छम्मासे, होइ विगटुं तवो कम्म।। वासं कोडिसहिअं आयामं, कट्ट आणु पुव्वीए। एसो बारस वरिसाइं, होइ संलेहणाइ तवो।।
आचारदिनकर, पृ. 346-47 प्रथम चार वर्ष विचित्र (विविध) प्रकार का तप करें। तत्पश्चात दूसरे चार वर्ष एकान्तर नीवि से पूर्ववत उपवास करें। उसके बाद दो वर्ष तक एकान्तर नीवि से आयंबिल करें। उसके बाद छ: मास तक उपवास, बेला तथा तेला का पारणा परिमित आयंबिल से करें। उसके बाद छ: मास तक आयंबिल के पारणा से चार-चार उपवास करें। उसके पश्चात एक वर्ष तक आयंबिल करें। इस प्रकार बारह वर्ष में यह तप सम्पूर्ण होता है। इस तप का यन्त्र इस प्रकार है -
तप दिन 12 वर्ष | प्र. परिपाटी द्वि. परिपाटी तृ. परिपाटी च. परिपाटी पं. परिपाटी प. परिपाटी
प्रथम चार | फिर चार वर्ष | फिर दो वर्ष | फिर छह | फिर छह | फिर एक | वर्ष यावत । यावत । यावत | मास यावत | मास यावत वर्ष यावत | | उप.2 ए.1 | उप.2 नी.1 | आ.1 नी. 1 | उप.1 आ.1 | उप.4 आ.1 | आ.1 उप.4 ए.1 | उप.3 नी.1 | आ.1 नी. 1 | उप.2 आ.1 | उप.4 आ.1 | आ.1 उप.5 ए.1 उप.4 नी.1 | आ.1 नी. 1 उप.3 आ.1 उप.4 आ.1 उप.6 ए.1 | उप.5 नी.1 | आ.1 नी. 1 उप.1 आ.1 उप.4 आ.1 आ.1 उप.15 ए.1 | उप.15 नी.1 | आ.1 नी. 1 | उप.2 आ.1 | उप.4 आ.1 आ.1 उप.30 ए.1 | उप.30 नी.1 | आ.1 नी. 1 | उप.3 आ.1 | उप.4 आ.1 आ.1
• प्रचलित विधि के अनुसार इस तप के दिनों में अरिहन्त पद की आराधना करते हुए निम्न जाप करें
जाप साथिया खमा. कायो. ॐ नमो तवस्स 12 12
12 11. सर्वसंख्या श्री महावीर तप
इस तप के नाम से ही सूचित होता है कि इसमें भगवान महावीर ने छद्मस्थकाल (साढ़े बारह वर्ष) में जितनी तपश्चर्याएँ की, उन तपों को करने का
आ.1
माला
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