________________
88...सज्जन तप प्रवेशिका
12
20
• जीतव्यवहार के परिपालनार्थ इस तप के उपवास दिनों में जापादि क्रियाएँ निम्नवत करनी चाहिए
जाप - जिस तीर्थङ्कर के निर्वाण तप की उपासना चल रही हो, उस नाम के साथ ‘पारंगताय नमः' जोड़ दें। जैसे- महावीरस्वामी पारंगताय नम:, आदिनाथ पारंगताय नम: आदि।
साथिया खमासमण कायो. माला
12 12 5. ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप
यहाँ ज्ञान, दर्शन, चारित्र का तात्पर्य सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र है। आत्म तत्त्व की पहचान करना अथवा आत्माभिमुख करने वाला ज्ञान सम्यक्ज्ञान कहलाता है। जैनागमों में ज्ञान के पाँच प्रकार बतलाए गये हैं -
1. मतिज्ञान - इन्द्रियों और मन के द्वारा पदार्थों का ज्ञान होना। 2. श्रुतज्ञान - उपदेश श्रवण या शास्त्र पठन आदि के द्वारा ज्ञान होना।
3. अवधिज्ञान - इन्द्रियों और मन की अपेक्षा के बिना आत्मा द्वारा रूपी पदार्थों का मर्यादित ज्ञान होना।
4. मनःपर्यवज्ञान - सर्व संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जान लेना।
5. केवलज्ञान - समस्त लोकालोक के रूपी-अरूपी पदार्थों का हस्तामलकवत ज्ञान होना। इन पांचों ज्ञानों के कुल मिलाकर 28+14+6+2+1 = 5 भेद होते हैं। ___ जो पदार्थ जैसा है उसे वैसा ही जानना, उसके सत्य स्वरूप को समझने की रुचि होना अथवा विवेकयुक्त दृष्टि होना सम्यक्दर्शन कहलाता है। सम्यक्दर्शन तीन प्रकार का होता है - __ 1. क्षायिक सम्यक्दर्शन - अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय एवं मिथ्यात्व मोहनीय के क्षय से वस्तु की यथार्थता का बोध होना, वह क्षायिक सम्यक्दर्शन है।
2. औपशमिक सम्यकदर्शन - अनन्तानबन्धी चारों कषायों तथा मिथ्यात्व-मोहनीय आदि तीन- इन सातों के उपशम से जो वस्तु की सत्यता का बोध होता है, वह औपशमिक सम्यक्त्व है।