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46...सज्जन तप प्रवेशिका
19. प्रतर तप
श्रेणी को श्रेणी से गणा करना प्रतर कहलाता है। उत्तराध्ययनसूत्र की शान्त्याचार्य टीका (पत्र 601) के अनुसार प्रतर क्रम से अर्थात श्रेणी को श्रेणी पदों से गुणाकार करके किया जाने वाला तप प्रतर तप कहा जाता है। उदाहरणार्थ- उपवास, बेला, तेला, चोला इन चार पदों की श्रेणी है। इन चार पदों को चार से गुणा करने पर 4x4 = 16 पद हो जाते हैं।
वे सोलह पद लम्बाई-चौड़ाई में बराबर होने चाहिए। जैसे- पहली श्रेणी में 1-2-3-4 यह क्रम बनेगा, दूसरी श्रेणी में 2-3-4-1 यह क्रम रहेगा। स्पष्ट बोध के लिए स्थापना यन्त्र इस प्रकार है -
उपवास 40, पारणा 17, कुल दिन 56 | पहली श्रेणी | उपवास | बेला तेला | चोला | | दूसरी श्रेणी | बेला । तेला | चोला । उपवास | तीसरी श्रेणी । तेला | चोला । उपवास | बेला चौथी श्रेणी | चोला उपवास | बेला । तेला
यह तप तीर्थङ्कर उपदिष्ट एवं इत्वरिक अनशन के छह प्रकारों में से एक है। उत्तराध्ययनसूत्र (30/10-11) में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यह साधु एवं श्रावक दोनों के लिए अवश्य करने योग्य है। वर्तमान में इस तपस्या के आराधक वर्ग प्राय: नहीं दिखते।
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्र महोत्सव करना चाहिए, उपवास की संख्यानुसार जिनेश्वर प्रतिमा के सम्मुख फल, नैवेद्य आदि चढ़ाने चाहिए, यथाशक्ति साधर्मी वात्सल्य एवं संघ की पूजा भक्ति करनी चाहिए।
• इस तप में उपवास के दिन श्रेणी तप की भाँति साथिया आदि सर्व क्रियाएँ करनी चाहिए। 20. घन तप
प्रतर को श्रेणी से गुणा करना घन कहलाता है। शान्त्याचार्य (पत्र 601) टीकानुसार जैसे सोलह की संख्या प्रतर हुई, इसे श्रेणी 4 की संख्या से गुणा