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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...47
करने पर 64 की संख्या आती है। यह घन संख्या कहलाती है तथा इस संख्या के क्रम से किया जाने वाला तप, घन तप कहा जाता है। आचारदिनकर के अनुसार विविध अंकों की युक्ति से किये जाने वाले तप को घन-तप कहते हैं। ___ यह तप मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। इस तप की आराधना श्रमण एवं गृहस्थ दोनों को करनी चाहिए। वर्तमान में यह तप प्रचलन में नहीं है। यह तप इत्वरिक अनशन के छह प्रकारों में से एक है।
इस तप विधि के सम्बन्ध में दो प्रकार प्राप्त होते हैं -
प्रथम रीति- प्रस्तुत रीति के अनुसार इस तप में 16x4 = 64 पद एवं आठ श्रेणियाँ होती हैं। एक श्रेणी को पूर्ण करने में 36 उपवास और 8 पारणा कुल 44 दिन लगते हैं। इस तरह आठों श्रेणियाँ पूर्ण करने में 352 दिन लगते हैं, जिनमें 288 उपवास और 64 पारणा दिन आते हैं। इसका स्थापना यन्त्र इस प्रकार है -
उपवास 288, पारणा 64, कुल दिन 352 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 1 | 4 | 5 | 6 | 7 8 | 1 2 | 5 | 6 | 7 | 8 | 1 | 2 | 3 | 6 | 7 | 8 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 7 | 8 1 2 | 3 | 4 | 5 | 6 8 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7
दसरी रीति - आचारदिनकर (पृ. 360) के अनुसार इस तप में क्रमश: एक उपवास करके पारणा करें, फिर दो उपवास करके पारणा करें। पुन: इसी प्रकार एक उपवास करके पारणा करें और फिर दो उपवास करके पारणा करें। तत्पश्चात पुनः दो उपवास, एक उपवास, दो उपवास एक उपवास एकान्तर पारणे से करें। इस प्रकार इसमें कुल बारह उपवास एवं आठ पारणे होते हैं।
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