________________
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...45 इस तप के करने से क्षपक श्रेणी की प्राप्ति होती है। यह आगाढ़ तप साधु एवं श्रावक दोनों के लिए करणीय बतलाया गया है। इस तप का सर्वप्रथम उल्लेख उत्तराध्ययनसूत्र (30/10-11) में प्राप्त होता है। वहाँ इत्वरिक अनशन तप के छह प्रकारों में इसकी गणना की गयी है। वर्तमान में इसका स्थान प्रसिद्ध तपों में है। विधि
श्रेणौ षट्श्रेण्यः प्रोक्ता, को द्वौ प्रथमे क्षणे। द्वितीयादिषु चैकैक, क्रमवृद्धयाऽभिजायते ।।
आचारदिनकर, पृ. 362 इस तप की प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करें, फिर दो उपवास करके पारणा करें।
दूसरी श्रेणी में प्रथम एक उपवास करके पारणा करें, फिर दो उपवास करके पारणा करें, फिर तीन उपवास करके पारणा करें।
तीसरी श्रेणी में एक, दो, तीन और चार उपवास पारणापूर्वक करें। चौथी श्रेणी में एक, दो, तीन, चार और पाँच उपवास पारणापूर्वक करें।
पाँचवीं श्रेणी में एक, दो, तीन, चार, पाँच और छह उपवास पारणापूर्वक करें। ___छठी श्रेणी में एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह और सात उपवास पारणापूर्वक करें।
इस तरह छहों श्रेणियों में 83 उपवास और 27 पारणा, ऐसे कुल 110 दिनों में यह तप पूरा होता है।
उद्यापन - इस तप की महिमा के वर्धनार्थ तप पूर्णाहुति पर बृहत्स्नात्र पूजा करें, जिन प्रतिमा के आगे 110-110 पकवान, फल, पुष्प वगैरह चढ़ायें, साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें।
• प्रचलित विधि का अनुगमन करते हुए इस तप के दिनों में 'ॐ नमो अरिहंताणं' का जाप एवं निम्न क्रियाएँ अवश्य करेंसाथिया खमासमण कायोत्सर्ग माला
12 12
12
200