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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित
तप-विधियाँ
भरतीय संस्कृति तप-त्यागमूलक संस्कृति हैं। प्रत्येक धर्म संप्रदाय में तपमार्ग का अपना विशिष्ट महत्त्व रहा हुआ है। जैन परम्परा में तप को कर्मक्षय का मुख्य साधन माना गया है। इसकी विस्तृत साधना को बाह्य एवं आभ्यंतर तप के रूप में विभाजित किया गया हैं एवं दोनों का अपना वैशिष्ट्य हैं। बाह्य तप का स्वरूप अत्यंत विस्तृत है। इस अध्याय में आगम परम्परा से अब तक प्रचलित-अप्रचलित समस्त तपों का वर्णन किया है। इसके माध्यम से बाह्य तप की महत्ता उजागर होगी एवं बाह्य तप में रुचिवंत सुज्ञ जनों को अप्रतिम मार्ग की प्राप्ति होगी। आगमोक्त तप आराधना के द्वारा से साक्षात जिनवाणी की आराधना का लाभ प्राप्त हो सकता है। अत: यहाँ पर श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में वर्णित तप-विधियों का वर्णन किया जा रहा है।
श्वेताम्बर ग्रन्थों में वर्णित तपश्चर्या सूची श्वेताम्बर आगमों एवं पूर्ववर्ती ग्रन्थों में अनेकविध तपों का उल्लेख प्राप्त होता है। उनकी सामान्य जानकारी प्राप्त करवाने एवं कौन सा तप कितना प्राचीन है? इस मूल्य को दर्शाने हेतु कालक्रम पूर्वक एक सूची प्रस्तुत की जा रही है। अन्तकृत्दशासूत्र में उल्लिखित तप ... 1. भिक्षुप्रतिमा तप 2. गुणरत्नसंवत्सर तप 3. रत्नावली तप 4. कनकावली तप 5. महासिंहनिष्क्रीडित तप 6. लघुसिंहनिष्क्रीडित तप 7. लघुसर्वतोभद्र तप 8. महासर्वतोभद्र तप 9. भद्रोत्तरप्रतिमा तप 10. मुक्तावली तप 11. आयंबिल वर्धमान तप
(पहला एवं आठवाँ वर्ग) उत्तराध्ययनसूत्र में निर्दिष्ट तप
इन आगम में निम्न छह तपों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है- 1. श्रेणी तप 2. प्रतर तप 3. घन तप 4. वर्ग तप 5. वर्गवर्ग तप 6. प्रकीर्ण तप।
(30/10-11)