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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...23
यह तप सात परिपाटियों के द्वारा पाँच उपवास से प्रारम्भ कर ग्यारह उपवास तक की अभिवृद्धि करते हुए पूर्ण किया जाता हैं। इस तप की आराधना साधुओं एवं श्रावकों दोनों को करनी चाहिए। इसकी विधि निम्न प्रकार है - विधि
पडिमाइ सव्वभद्दाए, पण छ सत्त 8 नव दसेक्कारा । तह अड नव दस एक्कार, पण छ सत्त य तहेक्कारा ।।
पण छग सत्तग अड नव, दस तह सत्त 8 नव दसेक्कारा ।
पण छ तहा दस एगार, पण छ सत्तट्ट नव य तहा ।। छग सत्तड नव दसगं, एक्कारस पंच तह य नव दसगं । एक्कारस पण छक्कं, सत्त टु य इह तवे होति ।। तिन्निसया बाणउया, इत्युववासाण होंति संखाए। पारणया गुणवन्ना, भद्दाइतवा इमे भणिया ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 28 इस तप की प्रथम श्रेणी में - अनुक्रम से पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दस और ग्यारह उपवास अन्तर रहित पारणा से करें।
दूसरी श्रेणी में - अनुक्रम से आठ, नौ, दस, ग्यारह, पाँच, छह और सात उपवास अन्तर रहित पारणा से करें।
तीसरी श्रेणी में - अनुक्रम से ग्यारह, पाँच, छह, सात, आठ, नौ और दस उपवास बीच-बीच में पारणा पूर्वक करें।
चौथी श्रेणी में - अनुक्रम से सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, पाँच और छह उपवास पारणा पूर्वक करें।
पांचवीं श्रेणी में - अनुक्रम से दस, ग्यारह, पाँच, छह, सात, आठ और नौ उपवास पारणा पूर्वक करें।
छठी श्रेणी में - अनुक्रम से छह, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह और पाँच उपवास पारणा पूर्वक करें।
सातवीं श्रेणी में - अनुक्रम से नौ, दस, ग्यारह, पाँच, छह, सात और आठ उपवास अन्तर रहित पारणा से करें।
इस प्रकार इस तप में 392 उपवास तथा पारणा के 49 दिन मिलाकर यह तप 1 वर्ष, 2 मास, 21 दिनों में पूर्ण होता है।