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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...21
उद्यापन - इस तप की पूर्णाहुति पर बृहत्स्नात्र-विधि से परमात्मा की पूजा करें, यथाशक्ति अक्षत, नैवेद्य, फल आदि चढ़ायें, संघवात्सल्य एवं गुरु पूजा
करें।
माला
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• प्रचलित परम्परा के अनुसार इस तप में प्रतिदिन 'श्री महावीरस्वामी नाथाय नमः' की बीस माला गिनें। शेष साथिया आदि बारह-बारह करें। सुगम बोध के लिए इसका यन्त्र यह है
साथिया खमासमण कायोत्सर्ग
12 12 8. भद्रोत्तर प्रतिमा तप
भद्र अर्थात कल्याण, उत्तर अर्थात उत्तम। यह तप उत्तम (विशिष्ट) रूप से कल्याणकारी है, अत: इसका नाम भद्रोत्तर तप है। किन्हीं के मतानुसार मनोवांछित सिद्धि के लिए यह तप किया जाता है। वस्तुतः जहाँ कल्याण होता है वहाँ इच्छित कार्य स्वयमेव फलीभूत हो जाते हैं।
अन्तकृत्दशासूत्र (8/8वाँ अध्ययन) के अनुसार इस तप की आराधना राजी रामकृष्णा ने की थी। इस तप में पाँच उपवास से प्रारम्भ कर नौ उपवास तक चढ़ा जाता है तथा यह तप पाँच श्रेणियों में पूर्ण होता है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़ तप है। विधि
भद्दोत्तरपडिमाए, पण छग सत्तट्ट नव तहा सत्ता । अड नव पंच छ तहा, नव पण छग सत्त अद्वैव ।। तह छग सत्तड नव पण, तह 8 नव पण छ सत्त भत्तट्ठा। पणहत्तरसयमेवं, पारणगाणं तु पणवीसं ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ.28; प्रवचनसारोद्धार, 271/1537-40 इस तप की प्रथम श्रेणी में - अनुक्रम से पाँच, छह, सात, आठ और नव उपवास करके हर एक के बाद पारणा करें।
दूसरी श्रेणी में - अनुक्रम से सात, आठ, नव, पाँच और छह उपवास अन्तर रहित पारणा से करें।
तीसरी श्रेणी में - अनुक्रम से नव, पाँच, छह, सात और आठ उपवास अन्तर रहित पारणा से करें।