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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...15 पानी की दो-दो दत्तियाँ ग्रहण करते हैं इसी तरह क्रमश: एक-एक की वृद्धि करते हुए तीसरे अष्टक में तीन-तीन, चौथे अष्टक में चार-चार, पांचवें अष्टक में पाँच-पाँच, छठवें अष्टक में छह-छह, सातवें अष्टक में सात-सात और आठवें अष्टक में अन्न-जल की आठ-आठ दत्तियाँ ग्रहण की जाती है।
इस अष्ट-अष्टमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना में कुल 64 दिन और 288 दत्तियाँ ग्रहण की जाती हैं।
अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा का यन्त्र इस प्रकार है -
दिन
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दत्ति संख्या कूल 111111118 | 2 | 2 | 2 |2|2|2|22 16 3 | 3 | 3 | 3 | 3 |3| 3 | 324 44 4 4 | 4 | 4 4 4 32 5555555540 6 6 6 6 6 6 6 6 48 777777 7 | 7 56 18 | 8 | 8 |8|8|8 |8|864
तप दिन 64, दत्तियाँ 288
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4. नवनवमिका भिक्षुप्रतिमा तप ___यह प्रतिमा पूर्ववत सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की तरह वहन करते हैं। विशेष इतना है कि इस प्रतिमा की तपश्चर्या विधि नौ-नवकों में पूर्ण की जाती है। अन्तकृत्दशा सूत्र (8/5) के अनुसार यह तप आर्या सुकृष्णा रानी ने प्रव्रज्या काल में किया था। इसकी विधि निम्न है
विधि - इस नवनवमिका भिक्ष प्रतिमा की आराधना करते समय प्रथम नवक (नौ दिन) में प्रतिदिन एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार आगे क्रमश: एक-एक दत्ति बढ़ाते हुए दूसरे नवक में दो