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(१४)
काम उन नाध्यों के उस हिस्से में जिसको सबूत कहो हैं हरगिज़ नही लिया है और न उमसे सुबूत में किसी किस्म की मदद ली जा सक्ती है
मानली १-किसी एक बिन्दु से किसी दूसरे बिन्दु तक रेखा खींच सक्ते हैं
टि.. हम खपाल करते हैं कि कोई सीधी रेखा दो नियत बिन्दुयों के दर्मियान जिनको हम उम्के ग्रादिव्यन्त सममें उपस्थित है तो उम सीधी रेखा को हम परिमित खा कहते हैं लेकिन जब हम उसको अादि अन्त को खयाल में नहीं लाते हैं तो वह मीधी रेखा अपरिमित कहलाती है २- परिमित रेखा को उसकी सीध में चाहें जितना बढ़ा सक्त है
टि (१) हर सीधी रेखा दोनों तरफ़ विला किसी इद्द सुकररा के बाद सक्ती है इस प्रवाध्यो पक्रम की मदद से हम परिमित सीधी रेखा को उसके हर सिरे की तरफ गितना चाहें वफ़ा खतो है
टि. ( २ ) व्यवाध्योपक्रम १ , २ से एक सीधे मिस्तर (रूल) का काम में लाया जाना मुकद्दम पाया जाता है यह ज़रूर नहीं है कि वह मिस्तर
मायशी पैमानों या हिरमों में बांटा गया हो कि उससे किसी खास लम्बाई की रेखा नापी जा सके
३- कि जिस केंद्र से और उस केंद्र से जिस दूरी पर चाहें वृत्त खोंच सक्त हैं
टि. इस अवध्योपक्रम कम्यास यानी परकार का एक खास काम में लामा फज़ करना यानी यह कि उस के वसीले से मित्त खींचे जाइज़ मान लिया गया है लकिन यह इजाज़त हगिज़ नहीं दी गयी है कि हम उसके वसीले से किसी दूरी को ना या उस दूरी को एक मुकाम से दूसरे सुकाम पर ले जावें ।
स्वयंसिद्धि टि. स्वयंसिद्धि वह प्रमेयोपपाद साध्य है जिनमें सुबूत को गंजाया नहीं है लेकिन जिनकी सचाई मोसी जाहिर है कि फौरने मान लैनी प. खती है किसी प्रमेयोपपाय साध्य को सिर्फ इस वजह से कि वह जाहिर बात है स्वयं सिविन खयाल करना चाहिये उनको स्वयं मिडिखयाल करने के लिये यह भी जरूर है कि उसका मुवत ऐसी दलीलों के वसीले से जिसकी बुनियाद जियादा जाहिर प्रमेयोपपाद साध्य पर है नहोस के क्योंकि यह सनामिद है कि खयंसिद्धि की तादाद जहां तक समकिम है कम हो और इसी वजह से बीसवीं साध्य और बाजर और साध्य गो वह साध्य दसरी स्वयंसिडियों की तरह जाहिर बातें हैं स्वयं सिद्धि में दाखिल नहीं को गयो है सफसिल तौर पर दोनों में से साबित की गया हैं
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