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चौथा अध्याय तपस्या
मन्दिर से आने के बाद वेंकटरमण कस्बे में इधर-उधर घूमने लगा । किसी ने उससे पूछा कि क्या वह अपना सिर मुंडवाएगा। यह सवाल इसलिए पैदा हुआ होगा क्योकि इस बात का कोई बाह्य चिह्न नही था कि इस ब्राह्मण युवक ने ससार का परित्याग कर दिया है या उसका ससार का परित्याग करने का इरादा है । वह तत्काल सिर मुंडवाने के लिए राजी हो गया और उसे अय्यानकुलम सरोवर पर ले जाया गया जहाँ कई नाई हजामत का धन्धा करते थे । वहाँ उसने अपना सिर मुंडवा दिया। फिर सरोवर की सीढ़ियों पर खडे होकर उसने अपनी शेष धनराशि जो तीन रुपये से कुछ अधिक थी, दूर फेंक दी । इसके बाद उसने फिर कभी धन का स्पश नही किया । उसने मिठाइयो की पोटली भी, जिसे वह पकडे हुए था, दूर फेंक दी । " इस शरीर को मिठाई देने की क्या आवश्यकता है ?"
उसने ब्राह्मण जाति के चिह्नरूप यज्ञोपवीत को उतारा और इसे दूर फेंक दिया क्योकि जो व्यक्ति ससार का परित्याग करता है वह न केवल गृह और सम्पत्ति का परित्याग करता है बल्कि अपनी जाति और सभी नागरिक मानप्रतिष्ठा का भी परित्याग कर देता है |
तब उसने अपनी धोती उतारी, इसमे से एक टुकडा लगोटी के लिए फाड लिया और शेष दूर फेंक दिया ।
ससार - परित्याग की क्रियाएँ पूर्ण करने के बाद वह मन्दिर में वापस आया । जैसे ही वह मन्दिर के पास पहुँचा, उसके मन मे यह विचार आया कि धर्मशास्त्रो के आदेशानुसार बाल कटवाने के वाद व्यक्ति को स्नान करना चाहिए, परन्तु उसने अपने मन मे कहा, "इस शरीर को स्नान का सुख क्यो प्रदान किया जाए ?" तत्काल ही थोडी देर के लिए तेज वर्षा की बौछार आयी और इस प्रकार मन्दिर प्रवेश से पूर्व उसका स्नान पूर्ण हो गया ।
उसने पुन अन्दर के देवालय मे प्रवेश नहीं किया । इसकी कोई आवश्यकता भी नही थी । वस्तुत तीन वर्ष बाद उसने पुन वहाँ प्रवेश किया। उसने सहस्र सम्भो वाले महाकक्ष में, पत्थर की ऊँची उठी हुई जगह पर अपना आसन जमा लिया । यह जगह चारो ओर से खुली थी, इसकी छत नक्काशी किये हुए स्तम्भों