Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 150
________________ श्रीभगवान् का दैनिक जीवन १२७ वेद-मन्त्रो का उच्चारण करता है । एक या दो अन्य ब्राह्मण जो डेढ मील दूर नगर से वहाँ आये हैं, उनके साथ मन्त्र पाठ मे सम्मिलित होते हैं । तस्न के पास अगरबत्तियाँ जल रही हैं, उनकी भीनी-भीनी सुगन्धि सारे वायुमण्डल मे फैल रही है। सदियो मे तख्त के पास अंगीठी जलती रहती है, जो हमे उनकी दिनो-दिन क्षीण होती हुई जीवनी-शक्ति का स्मरण कराती है । कभी-कभी वह अपने अत्यन्त सुन्दर क्षीण हाथो और पतली शुण्डाकार अगुलियो को आग पर तापते हैं और अगो मे गरमी पैदा करने के लिए गरम हाथो से शरीर को धीरे धीरे रगडते हैं । सभी भक्तजन शान्त भाव से, प्राय चिन्तन मे आँखें वन्द किये हुए बैठे हुए हैं । छ बजने से कुछ क्षण पहले मन्त्र- पाठ समाप्त हो जाता है। जैसे ही श्रीभगवान् कोशिश करके तस्त से उठ खड़े होते हैं, डण्डे के लिए हाथ बढाते हैं। उनका सेवक उनके हाथ मे डण्डा थमा देता है और वह धीमे-धीमे दरवाजे की ओर पग चढ़ाते हैं सव भक्तजन उठ खड़े होते हैं । दुवलता या गिर पडने के भय के कारण श्रीभगवान् नीचे दृष्टि करके नही चलते, सभी जानते हैं कि यह उनको महज नम्रता है । वह पहाडी की तरफ, भवन के उत्तरी द्वार से बाहर निकलते हैं और धीरे-धीरे झुक कर डण्डे का सहारा लिये हुए, सफेद दीवारो वाले भोजन कक्ष और कार्यालय भवन के बीच के भाग से होते हुए, पुरुषो के अतिथि गृह का चक्कर लगाते हुए, आश्रम भवनो के सुदूर पूर्व मे स्थित गोशाला के पास स्नानगृह की ओर चले जाते हैं । हृष्टपुष्ट, छोटे कद और कृष्ण वण के, घुटनो तक सफेद धोतियाँ धारण किये हुए दो सेवक लम्बे पतले, गेहुए रंग के और केवल सफेद लगोटी धारण किये हुए श्रीभगवान् के पीछे चलते हैं । कभी-कभी किसी भक्त के निकट आने पर या किसी बालक को देखकर हंसने के लिए, वह ऊपर दृष्टि उठाते हैं । श्रीभगवान् की हास्य छटा अवणनीय है। कोई कठोर हृदय व्यापारी भी जव तिरुवन्नामलाई से प्रस्थान करेगा, उसका हृदय इस हास्य से आन्दोलित हो चुका होगा। एक बार एक सीधी-सादी महिला ने कहा था, "मैं दशन का अध नही समझती, परन्तु जब वह मुझे देख कर मुस्कराते हैं, मैं अपने को ऐसे ही सुरक्षित अनुभव करती हूँ जैसे कोई वालक अपने को माँ की गोद मे ।" जब मुझे अपनी पाँच साल की पुत्री ने निम्न पत्र भेजा, मैंने श्रीभगवान के दशन भी नही किये थे, “आपके हृदय में भगवान् के प्रति प्रेम की स्रोतस्विनी बढ़ेगी, जब वह हंसते होगे प्रत्येक व्यक्ति प्रफुल्लता का अनुभव करता होगा ।" सात बजे नाश्ता होता है । नाश्ते के बाद श्रीभगवान् सैर के लिए जाते है और फिर भवन मे वापस आ जाते हैं। इस बीच भवन की सफाई कर ली जाती है और तख्त पर साफ चादरें विछा दी जाती हैं । कई चादरो पर तो

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