Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ महासमाधि १८७ क्षीण हो चुके थे परन्तु उनके चेहरे पर पीडा का कोई चिह्न नही था। मैं एक दिन के लिए मद्रास से आया था। उनका हास्य इतना दीप्तिमान था कि उनकी दुवलता भी लुप्त हो गयी। अगले दिन दोपहर को वह सभा भवन मे वापस लौट आये ताकि उनके डिस्पेंसरी में रहने से अन्य रोगियो को असुविधा न हो । चिकित्सा क्षेत्र की सीमाओ मे परे एक और अनिवायता थी, जिमे श्रीभगवान् अच्छी तरह जानते थे श्रीभगवान जानते थे कि क्या उचित है और वह हमे ढाढ़स बँधाना चाहते थे ताकि हम उनकी शारीरिक मृत्यु को महन कर सकें । वस्तुत यह लम्वी पीडादायक वीमारी हमे उस अनिवाय जुदायी के लिए तैयार करने आयी थी, जिसके विषय में पहले बहुत से व्यक्तियो का यह अनुभव था कि वह उसे सहन नही कर सकेंगे । किट्टी को, जो एक पवतीय प्रदेश के वोडिंग स्कूल मे थी, श्रीभगवान् की दशा के सम्वन्ध में एक पत्र द्वारा सूचित किया गया । उसने उत्तर में लिखा, "मुझे यह सव जानकर बहुत दुःख हुआ परन्तु भगवान् जानते हैं कि हमारे लिए सर्वोत्तम क्या है उसका पत्र भगवान् को दिखाया गया । उनका चेहरा खुशी से चमक उठा । उन्होने उसकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करते हुए कहा कि किट्टी ने लिखा है "हम सबके लिए सर्वोत्तम क्या है" न कि उसके लिए सर्वोत्तम क्या है । ܟ उन्हें उन लोगो पर बहुत दया आती थी जो उनके कष्ट से व्यथित थे और उनके कष्ट को दूर करना चाहते थे । वह कष्ट को दूर करने और कुछ वर्षों के लिए मृत्यु को स्थगित करने का सरल उपाय नही अपनाना चाहते थे । वह तो अपने भक्तो को यह अनुभव करा के कि शरीर भगवान् नहीं है, आधारभूत उपाय अपनाना चाहते थे । " वह इस शरीर को भगवान् समझते हैं और इस पर कष्ट का आरोपण करते हैं । कितनी दयनीय स्थिति है । वह निराश है कि भगवान् उन्हें छोड कर दूर जा रहे हैं वह कहाँ जा सकते हैं और कैसे जा सकते हैं ।" अगस्त में आपरेशन के बाद, कुछ सप्ताह तक तो भगवान् की दशा मे सुधार प्रतीत हुआ परन्तु नवम्बर मे कन्धे के निकट, भुजा से ऊपर रसौली फिर निकल आयो । दिसम्बर में चौथा और अन्तिम आपरेशन हुआ । इससे घाव कभी ठीक नही हुआ । डाक्टरो ने अब यह स्वीकार कर लिया कि वह इससे अधिक और कुछ नही कर सकते । स्थिति अत्यन्त निराशाजनक थी । अगर रमोली फिर निक्ल आयो तो डाक्टर केवल शमनकारी औषधियाँ ही दे सकते थे । ५ जनवरी, १९५० का जयन्ती थी । उनका ७०वीं जन्म दिन मनान के लिए, जा कि अब उनका प्राय अन्तिम जन्म-दिन प्रतीत होता था, शोकातुर

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230