Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 225
________________ अठारहवाँ अध्याय सतत उपस्थिति भीड छंट गयी और आश्रम वीरान लगने लगा जैसे किसी अंगीठी की आग बुझ गयी हो। परन्तु आयम मे शोक और निगशा का भाव नही था जमा कि प्राय पृथ्वी से आध्यात्मिक शिक्षक के प्रयाण के उपरान्त होता है। आश्रम का वातावरण जव भी सामान्य या । यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने नगा कि श्रीभगवान् ने किम दत्तचित्तता और दया से अपने भक्तो को इसके लिए तैयार किया था तयापि विछोह उन के प्रारम्भिक दिनो मे किसी ने भी तिरुवन्नामलाई मे न रहना चाहा और जिन्हे वहां रहना चाहिए था वे भी वहाँ नही रहे। ____ कई कर्मशील भक्तो ने जाश्रम के प्रवन्ध के लिए एक समिति बना ली। निरजनानन्द स्वामी ने उनके माय काय करना स्वीकार कर लिया और उन्होंने भी उन्हे ममिति का स्थायी मभापति वनाना मान लिया। अन्य भक्तो ने अपने नगरो मे सभाएँ बना ली और वह नियमित वैठकें करने लगे । दुर्भाग्यवश, कुछ ऐसे भी व्यक्ति थे जिन्होंने गडवटी पैदा की या प्रसिद्वि प्राप्त करने की कोशिण की, जब कोई आध्यात्मिक शिक्षक इस समार से विदा होता है तव मदा ऐमा होता है। परन्तु ऐसे लोगो की सम्या बहुत कम थी। अधिकाश भक्त मयत रहे। बहुत साल पहले एक वसीयतनामा तैयार किया गया था। इसमे यह लिया गया था कि भगवान् के देहावसान के बाद आश्रम का प्रवन्ध किम प्रकार चलाया जायेगा । कुछ भक्त इस वमीयतनामे को श्रीभगवान् के पास ले गये थे । इन्हाने इम मारे वसीयतनामे को न्यान से पढा था और अपनी स्वीकृति दी थी। इसके बाद उन मव भक्तो ने इस पर माक्षी वेप मे हस्ताक्षर किये थे। मक्षेपत इममे यह लिखा था कि भगवान तथा माता के स्मारक पर प्रतिदिन पूजा की जायेगी। निरजनानन्द स्वामी के पुत्र के परिवार का आर्थिव महायता दी जायेगी और तिरुवन्नामलाई आध्यात्मिक केन्द्र बना रहगा। पाद में टममे कई लोगो ने दूसग वमीयतनामा बनाने के प्रयन विये परन्तु श्रीभगवान न इम पर भी विचार नहीं किया।

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