Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 227
________________ १९६ रमण महपि रिक्त पड़ा है । कक्ष मे कोई ऐसी चीज है जो अत्यन्त हृदय स्पर्शी है और अकथनीय रूप से अनुकम्पामय है । नये सभा भवन मे श्रीभगवान् की एक मूर्ति प्रतिष्ठापित की गयी । वसीयतनामे की एक शत यह भी थी भगवान् की मूर्ति की स्थापना की जायेगी परन्तु अभी तक कोई भी मूर्तिकार भगवान् की पूर्ण मूर्ति नही बना पाया । उसे श्रीभगवान् की रहस्यमयी शक्ति का अनुभव करना होगा और उससे प्रेरणा प्राप्त करनी होगी । यह मानवीय अगो को रूप प्रदान करने का नही अपितु उनमे दीप्तिमान दिव्य शक्ति और सौन्दय को मूर्त रूप देने का प्रश्न है । न केवल आश्रम के भवन वल्कि चारो ओर का प्रतिवेश पवित्र है । वहाँ सवत्र शान्ति का साम्राज्य है । यह निष्क्रिय शान्ति नही है वल्कि एक तरगित आनन्द-भावना है । समस्त वायुमण्डल भगवान् की उपस्थिति से अनुप्राणित है । यह सत्य है कि श्रीभगवान् की उपस्थिति तिरुवन्नामलाई तक ही सीमित नही है । ऐसा कभी था भी नही । भक्तजन जहाँ भी हो, वहाँ उन्हे भगवान् की अनुकम्पा और सहायता, तथा उनकी आन्तरिक उपस्थिति उपलब्ध है, यह पहले से भी अधिक प्रभावशालिनी है । पहले की तरह अब भी तिरुवन्नामलाई की यात्रा से भक्तो को अनुपम शान्ति मिलती है । इसका सौन्दय वर्णनातीत है · पृथ्वी पर ऐसे सन्त हुए हैं जिन्होने अपने भक्तो के पुन पुन मागदर्शन के लिए अनेक जन्म धारण करने का वचन दिया है । परन्तु श्रीभगवान् पूर्ण ज्ञानी थे, उनमे अह का लेशमात्र भी नही जो पुनजन्म का संकेत करे । भक्तजन इसे समझते थे । उनका वचन तो विलकुल भिन्न था । " मैं जा नही रहा हूँ । मैं जा भी कह सकता हूँ? मैं यही हूँ ।” उन्होने यह नही कहा कि "मैं यहाँ रहँगा ।" वल्कि "मैं यहाँ हूँ ।" ज्ञानी के लिए कोई परिवर्तन नही होता, कोई समय नही होता, भूत और भविष्य का कोई अन्तर नही होता, कोई गमन नही होता, केवल शाश्वत 'अव' होता है जिसमे समस्त समय विद्यमान है - विश्वव्यापी अवकाशशून्य 'यहाँ' । श्रीभगवान् सदा अपनी सतत निर्वाध उपस्थिति और निरन्तर भाग दर्शन पर वल देते थे । बहुत पहले उन्होंने शिव प्रकाशम् पिल्लई से कहा था, "जिसने गुर की अनुकम्पा प्राप्त कर ली निश्चय ही गुर उसकी रक्षा करेंगे और कभी भी उसका परित्याग नही करेंगे ।" भगवान् की अन्तिम वीमारी के दौरान मे जब भक्तो ने उनसे वहा कि ऐसा लगता है कि वे उन्ह छोडकर जा रहे ह आर उन्होंने अपनी दुवलता अभिव्यक्त की तथा भगवान् की निरंतर उपस्थिति की आवश्यक्ता वतलाई,

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