Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 228
________________ सतत उपस्थिति १६७ तव उन्होंने व्यग्य करते हुए कहा, "आप शरीर को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं।" भक्तो को शीघ्र ही ज्ञान हो गया कि भगवान् के उपरोक्त कथन मे मचाई है । वे हमारे पहले की अपेक्षा कही अधिव' आन्तरिक गुरु बन चुके हैं। जो लोग उन पर निभर करते थे, वे उनके मागदशन को जव अधिक सक्रिय और अधिक प्रभावशाली रूप में अनुभव करते हैं। उनके विचार उन पर अधिक स्थिरता से केद्रित हैं। आन्तरिक गुरु की ओर ले जाने वाला विचार मालतर और अधिक ग्रहणीय हो गया है। चिन्तन मे तत्काल ही अनुकम्पा का स्रोत प्रवाहित होता है। अच्छे और बुरे कार्यो का अप्रत्यक्ष प्रभाव अधिक तीक्ष्ण और प्रवल होता है। विछोह के प्रथम आघात के उपरान्त भक्तजन फिर तिरुवन्नामलाई की जोर आकर्पित होने लगे । केवल अन्तमुखी प्रकृति के व्यक्ति ही भगवान् की मिरन्तर उपस्थिति अनुभव नही करते । भगवान् के एक भक्त डा० टी० एन० कृष्णस्वामी का ऐसा विश्वास था कि वे केवल वैयक्तिक प्रेम और भक्ति के कारण हो उनके प्रति अनुरक्त हैं। उन्होने महासमाधि के बाद शोकातुर स्वर में कहा था, "मुझ जैसे लोगो का तो मानो सवम्व ही लुट गया ।" कुछ महीने बाद तिरुवन्नामलाई की यात्रा से वापस आने के बाद उन्होंने कहा था, "पहले दिनो मे भी वहाँ कभी इतनी गान्ति और सौन्दय नहीं था जितना आज है।" केवल अन्तर्मुखी प्रकृति के व्यक्ति ही उनके निरन्तर आन्तरिक मागदशन को अनुभव नही करते , यह भक्ति के प्रति तात्कालिक प्रतिक्रिया है। अरुणाचल पहाडी का रहस्य भी अव अधिक अभिगम्य हो गया है । पहले वहुत स व्यक्ति ऐसे थे जो इसकी शक्ति को लेशमात्र भी अनुभव नहीं करते थे, उनके लिए यह किसी अन्य पहाडी के समान ही पत्यर, मिट्टी और झाडियो की पहाडी थी। एक वार का जिक्र है श्रीमती तालेयार खान जो भगवान् की भक्त थी और जिनका पहले जच्याय मे वणन किया गया है, जपने एक अतिथि के साथ पहाडी पर बैठी हई श्रीभगवान के सम्बन्ध मे वातें पर रही थी। उहाने कहा, "भगवान् जीवित जाग्रत प्रभु है और वे हमारी पच प्राथनाओ का उत्तर देते हैं। मेरा यह निजी अनुभव है। भगवान् कहते हैं कि यह पहाडी म्वय भगवान् है । मैं यह सब नहीं समझ सकती परन्तु भगवान ऐसा कहते है। इसलिए मैं इस पर विश्वाम करती हूँ।" उनके मुस्लिम मित्र न जिन पर अब भी फारमी मस्कृति की परम्पराओ की छाप शप थी, उत्तर दिया, "अगर हमारे फारसी विश्वासो के अनुमार अभी वर्षा हा गयी ता में इमे मत्य मान गा ।" थोडी देर बाद ही वर्षा होने लगी और वे यह पहानी बतान के लिए भीगत हुए पहाडी से नीचे आये ।

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