________________
१६४
रमण महपि
नही सचाई की, सिद्धान्त नही प्रज्ञा की, अभिमान नही नम्रता की आवश्यकता है । विशेषत, जब सभा भवन मे गीत गाये जाते थे तब यह बात प्रत्यक्ष देखने मे आती थी । श्रीभगवान् किसी प्रसिद्ध व्यक्ति मे कम दिलचस्पी प्रदर्शित करते थे परन्तु जो व्यक्ति तन्मय होकर भक्ति भाव से गाता उस पर उनकी कृपा-दृष्टि होती ।
स्वभावत श्रीभगवान् के भक्तो मे हिन्दुओ की सख्या सबसे अधिक थी, परन्तु अन्य धर्मावलम्वी भी थे। श्री पाल ब्रटन ने अपनी पुस्तक, ए सच इन सीट इण्डिया के माध्यम से ससार मे श्रीभगवान् के ज्ञान का जितना प्रसार किया उतना किसी और व्यक्ति ने नही किया ।
बाद के वर्षों मे आश्रम मे या उसके निकट स्थायी आवासियो मे निम्न महानुभाव थे विशालकाय, दयालु और गम्भीर आवाज वाले मेजर चैडविक, तेज़ स्वभाव की भव्य व्यक्तित्व वाली पारसी महिला श्रीमती जालेयार खान, ईराक के शान्त और सरल हृदय एस० एस० कोहेन, मुस्लिम शानोशौकत वाले, फारसी के सेवा-निवृत्त प्रोफेसर डॉ० हाफिज़ सैयद । अमरीका, फास, जर्मनी, हालैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, पोलैण्ड आदि देशो से लम्बी या छोटी अवधि के लिए आश्रम मे भक्तजन आते रहते थे ।
श्रीभगवान् का एक तरुण सम्वन्धी विश्वनाथन सन् १९२३ मे १६ वर्ष की अवस्था मे आश्रम मे आया था । यह उसका प्रथम आगमन नही था, परन्तु इस वार जैसे ही वह सभा भवन में प्रविष्ट हुआ, श्रीभगवान् ने उससे पूछा, "क्या तुमने अपने माता-पिता से आज्ञा ले ली है
प्रश्न इस वात का सूचक था कि इस वार वह आश्रम मे रहने के लिए आया है । उमने स्वीकार किया कि वह स्वयं भगवान् की तरह पीछे एक पत्र लिख कर छोड़ आया है परन्तु उसमे यह नही लिखा कि वह कहाँ जा रहा है । भगवान् ने उससे अपने परिवार वालो के नाम एक पत्र लिखवाया परन्तु किमी तरह उसके पिता को यह आभास हो गया कि वह आश्रम गया है और वे इस विषय मे वातचीत करने के लिए वहां चले आये । वह खुले दिल से बात करने के लिए आये थे । उन्होने स्वामी को बहुत प्रशसा मुन रखी थी परन्तु वह उन्हें एक तरण सम्बन्धो के रूप मे वेंकटरमण ही जानते थे । स्वभावत उनके लिए भगवान् की दिव्य व्यक्ति के रूप मे कल्पना करना कठिन था । भगवान् की उपस्थिति मे आने पर, उनका शरीर भय और सम्मान की भावना से काँपने लगा और अनायास ही उनका मस्तक भगवान् के चरणो मे नत हो गया ।
ܕ ܕ ܕ
उनके मुंह से साश्चर्य एकाएक यह शब्द निकल पडे "पहले वे वेक्टरमण का तो यहाँ कोई चिह्न ही नही दिखायी देता ।"