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भक्तजन
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ने उसे चिढाते हुए कहा, "तो आप विना आज्ञा लिये मद्रास गये थे? क्या तुम्हारी यात्रा सफल रही ?" वह अह से इतने शून्य थे कि वह अपने कार्यों के सम्बन्ध में भी इतनी स्वाभाविकता और निर्वैयक्तिकता से बातचीत या हास-परिहास कर सकते थे, जितनी कि दूसरो के कार्यों के सम्बन्ध मे।
भगवान् का काय तो भक्तो को परिस्थितिजन्य प्रसन्नता और पीडा से, आशा और निराशा से उनकी आन्तरिक प्रसन्नता की ओर उन्मुख करना था। यही व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप है। इस सत्य को अनुभव करने वाले कई ऐसे भी भक्त थे जो मानसिक प्राथना में भी कभी कुछ नही मांगते थे बल्कि इच्छाओ की जन्मदात्री आसक्ति पर विजय पाने का प्रयास करते थे हालांकि उन्ह पूण सफलता नहीं मिली। अगर वह श्रीभगवान् के पास वाह्य लाभो तथा महत्तर प्रेम, महत्तर दृढता और महत्तर प्रज्ञा को छोडकर किसी अन्य वस्तु के लिए जाते तो यह एक प्रकार की वचना होती। पीडा निवारण का उपाय यह था कि हम अपने से यह प्रश्न करें 'यह पीडा किसको होती है ? मैं कौन हूँ? और इस प्रकार उसके साथ एकरूपता अनुभव करें जो जन्म-मरण और पीहाओ से परे है।' अगर कोई व्यक्ति भगवान् के पास इस इरादे से जाता तो उसे शान्ति और शक्ति की प्राप्ति होती। ___कुछ ऐसे भक्त भी थे जो भगवान् से सहायता और सरक्षण के लिए कहते थे। वह उन्हे अपना पिता और माता समझते थे और उन्हे किसी भय या पीडा की आशका होती तो वह उनकी शरण में जाते । या तो वह उन्हे पत्र लिख कर इस घटना के बारे मे बताते या वह उनसे जहां कही भी वह होते प्रार्थना करते, और उनकी प्राथनामो का उत्तर मिलता । पीडा या भय दूर हो जाते और जहाँ यह सम्भव या लाभप्रद न होता, सहन करने के लिए उनमे अनन्य शान्ति और सहिष्णुता का प्रादुर्भाव हो जाता। उन्हे स्वत स्फूत रूप मे यह सहायता आती, श्रीभगवान की ओर से किसी प्रकार का ऐच्छिक हस्तक्षेप न होता । इसका यह अभिप्राय नहीं कि इसका कारण केवल भक्त का विश्वास था, इसका कारण भक्त के विश्वास के प्रत्युत्तर के रूप में श्रीभगवान् की सहज दयालुता थी।
विना इच्छा के और कई बार परिस्थितियो के मानसिक ज्ञान के बिना, इस शक्ति के प्रयोग के सम्बन्ध मे कई भक्त चकित थे । देवराज मुदालियर ने इसका वणन किया है कि किस प्रकार एक बार उन्होने इस सम्बन्ध मे श्रीभगवान् से प्रश्न किया था।
"अगर शानियो के समान भगवान् का मन नष्ट हो गया है और उहे कोई भेद नही दिखायी देता, केवल मात्मा ही दिखायी देती है तो वह किस प्रकार प्रत्येक पृथक् शिष्य या भक्त के साथ व्यवहार कर सकते