Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 205
________________ १७६ रमण महपि अब भी मौन धारण किये हुए थे उन्होने विभिन्न अवसरो पर गम्बीरम शेषाय्यर के लिए शिक्षाएँ लिखी और उसके देहावसान के वाद इन लेखो को क्रमबद्ध किया गया तथा सैल्फ इन्क्वाइरी के नाम से पुस्तक के रूप मे प्रकाशित किया गया । इसी प्रकार उसी अवधि मे शिवप्रकाशम् पिल्लई को दिये गये उनके उत्तरो को विस्तृत रूप प्रदान किया गया और वह हू एम आई ? नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित किये गये । आश्रम द्वारा प्रकाशित अन्य गद्य पुस्तकें श्रीभगवान् द्वारा नही लिखी गयी थी बल्कि भक्तो के प्रश्नो के उत्तर रूप मे उन्होने जो मौखिक व्याख्याएँ की वह उनका सग्रह हैं और इसीलिए वह सभी वार्तालाप के रूप मे है । उनकी कविताएँ दो वर्गों में विभाजित हैं एक तो वे जो भक्ति अर्थात् प्रेम और उपासना के माध्यम से जीवन-धारा की अभिव्यक्ति करती हैं और दूसरी वे जो अधिक सैद्धान्तिक हैं। पहले वग में फाइव हिम्स टू श्री अरुणाचल है, यह सभी स्तोत्र विरूपाक्ष - निवास की अवधि मे लिखे गये थे । इनका भक्तितत्त्व अद्वैत के परित्याग के लिए नही कहता वल्कि वह पूर्णत ज्ञान - संपृक्त है । वे भक्त के दृष्टिकोण से लिखे गये थे, हालांकि जिसने उन्हें लिखा वह परम ज्ञान और भगवद् - मिलन के आनन्द की स्थिति मे प्रतिष्ठित था, मिलनउत्कण्ठा की पीडा उसमे नही थी । इसीलिए यह भक्त के हृदय को अधिक प्रभावित करते हैं दो पुस्तको - ऐट स्टॅजाज और इलेविन स्टॅजाज का पहले वर्णन किया जा चुका है । दूसरी पुस्तक मे श्रीभगवान् ने न केवल भक्त के रूप मे लिखा वल्कि वस्तुत इन शब्दो का प्रयोग किया, "वह व्यक्ति जिसने अभी परम ज्ञान प्राप्त नही किया ।" भगवान् के एक भक्त श्री ए० वोस ने इस बात की स्पष्ट पुष्टि के लिए उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यो लिखा, क्या यह भक्तो के दृष्टिकोण से और उनके लिए था । श्रीभगवान् ने स्वीकृति प्रदान करते हुए कहा कि वात वस्तुत ऐसी है । फाइव हिम्स का अन्तिम पद श्रीभगवान् ने पहले सस्कृत मे लिखा और वाद मे तमिल मे इसका अनुवाद किया । इसके लेखन की कहानी आश्चय मे डालने वाली है । गणपति शास्त्री ने उनसे सस्कृत मे कविता लिखने के लिए कहा और उन्होंने हँसते हुए उत्तर दिया कि वह संस्कृत व्याकरण के मूल नियमो और संस्कृत छन्दों से अनभिज्ञ है । शास्त्रीजी ने भगवान् को मस्कृत का एक छन्द समझाया और उनसे प्राथना की कि वह इम छन्द मे कविता करने का प्रयास करें । उसी सायकाल उन्होंने मस्कृत मे पांच श्लोकों की रचना की । उनका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है अमृत के सागर, दयानिधि, अपने प्रकाश से विश्व को व्याप्त करने

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