Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 193
________________ १६६ रमण महर्षि जिक्र किया जा चुका है, तिरुवन्नामलाई मे कभी भी स्थायी रूप से नहीं रहे परन्तु वह और उनके परिवार के लोग अक्सर आश्रम में आया करते थे। उन्होने भी श्रीभगवान् के माथ एक ही कक्षा मे अध्ययन किया था और उनके साथ खेले और कुश्तियाँ लही थी। वे हमेशा स्वामी जी के साथ खुलकर बात करते और हंसी-मजाक किया करते थे। जव श्रीभगवान् विरूपाक्ष कन्दरा मे रहते थे उन दिनो वह यह देखने के लिए आये थे कि उनके पुराने मित्र स्वामी के रूप मे कैसे दिखायी देते हैं। परन्तु जब वह उसे मिले तो उन्हे ऐसा अनुभव हुमा कि वे एक दिव्य बात्मा के सम्मुख खड़े हुए हैं। परन्तु उनके बड़े भाई मणि को ऐसा अनुभव नही हआ। वह तरुण स्वामी की ओर, जो स्कूल मे उसमे निचली कक्षा में पढ़ते थे, उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगा । भगवान् ने केवल उसकी ओर एक बार देखा और उनके मौन प्रभाव के वशीभूत हो, वह उनके चरणो में गिर पड़ा। इसके बाद वह भी उनका भक्त बन गया । रगा ऐय्यर के एक पुत्र ने श्रीभगवान की प्रशस्ति मे तमिल मे एक लम्बी कविता लिखी है, जिसमे श्रीभगवान का दिव्य ज्ञान के साथ 'विवाह' सम्पन्न कराया गया है। महर्षीज गॉस्पल का अधिकाश भाग पोलिश शरणार्थी एम० फिडमैन के साथ हुए वार्तालाप का सकलम है। दो पोलिश महिलाएं आश्रम मे अत्यन्त विख्यात हैं। जब श्रीमती नोये को अपने देश अमरीका में वापस लौटना पड़ा, तो उनके नेत्रो मे आंसू छलछला आये। श्रीभगवान् ने उसे सात्वना देते हुए कहा, "तुम रोती क्यो हो ? तुम जहां भी जाओ, मैं तुम्हारे साथ हूं।" भगवान के सभी भक्तो के सम्बन्ध में यह सत्य है । वह सदा उनके साथ है, अगर वह भगवान् को स्मरण करेगे तो वह भी उन्हे स्मरण करेंगे, अगर वह भगवान् को भूल भी जायें, भगवान उन्हे कभी नहीं भूलेंगे, अगर भगवान् किसी भक्त को व्यक्तिगत रूप से यह बात कहते तो यह उनका महान आशीर्वाद समझा जाता था। मेरे तीन बच्चे तिरुवन्नामलाई में एकमान यूरोपीय बच्चे थे। वह अन्य आश्रमवासियो से स्पष्ट भिन्न दिखायी देते थे । दिसम्बर १६४६ को एक दिन सायकाल श्रीभगवान् ने मेरे दो बड़े वच्ची को चिन्तन की दीक्षा दी। अगर ये बच्चे इमका वणन करने में अममथ थे तो आश्रम के वयस्क भक्तों की भी यही अवस्था थी । दम-वीया विट्टी ने लिम्बा, "जब आज सायकाल में मभाभवन में बैठी हुई थी, श्रीभगवान मझे देखकर मुस्वगये, मैंने अपनी आँखें बन्द कर ली और चिन्तन प्रारम्भ पर दिया । ज्याही मैंने अपनी आँखें वन्द वी मुझे बडा आनन्द आया । मैंन ऐमा अनुभव किया कि भगवान मेरे अत्यन्त निकट हैं और वह वस्तुत मरे अन्दर विगजमान है । यह किमो वस्तु में

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