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श्रीभगवान् का दैनिक जीवन पदो मे शिक्षा'--का पाठ प्रारम्भ होता है । वेद मन्त्री का पाठ लगभग पैतीस मिनट तक चलता है। वेद मन्त्री के पाठ के समय प्राय ऐसा होता है कि श्रीभगवान् शान्त होकर बैठ जाते हैं, उनका चेहरा शाश्वत, स्थिर और आभामय दृष्टिगोचर होता है मानो कोई प्रस्तर प्रतिमा हो। इसके बाद साढे छ बजे तक सब लोग बैठते हैं और इस समय महिलाओ का आश्रम से जाने का समय हो जाता है। कई पुरुष एक घण्टा और आश्रम में रुक जाते हैं, प्राय वह मौन धारण किये रहते हैं, कभी-कभी वातें भी करते हैं, तमिल गीत भी गाते हैं। इसके बाद सायकाल का भोजन होता है और भक्तजन विदा हो जाते हैं।
आश्रम का भी सायकालीन सत्र विशेप महत्त्वपूर्ण होता है क्योकि इसमे प्रात कालीन मन्त्र पाठ की गम्भीरता के साथ-साथ मैत्रीपूण वार्तालाप भी सम्मिलित होता है। परन्तु जो ज्ञानी हैं, उनके लिए सदैव गम्भीरता विद्यमान है, उस समय भी जब कि श्रीभगवान् हंस रहे होते हैं और हास-परिहास कर रहे होते हैं।
सेवक प्रलेप लेकर श्रीभगवान को टांगो की मालिश करने के लिए आता है परन्तु वह इसे उसके हाथ से ले लेते हैं। लोग बहुत उत्तेजित हो उठते है। परन्तु वह अपने निषेध को भी हास में परिवर्तित कर देते हैं, "आपने दशन
और भाषण से अनुग्रह प्राप्त किया और अव आप स्पना द्वारा अनुग्रह प्राप्त करना चाहते हैं ? मुझे स्वय स्पश द्वारा कुछ अनुग्रह प्राप्त कर लेने दीजिये।"
यह उनके परिहास की तुच्छ-सी प्रतिछवि है जिसे कागज पर अकित किया जा सकता है । हास-परिहास और व्यग्य में भी वह अपने विचार प्रकट करते हैं । अत्यन्त आकर्षक ढग से जब वह कोई कहानी कहते थे, वह पूरे अभिनेता वन जाते थे और उसके पाट को इस प्रकार प्रस्तुत करते थे मानो वह स्वय अभिनेता हो। जो लोग उनकी भापा नहीं समझते थे, वह भी उनके इस अभिनय को देख कर अत्यन्त विस्मित हो उठते थे । वास्तविक जीवन का भी वह अभिनय करते थे और वास्तविक जीवन में भी हास-परिहास से गहन सहानुभूति की ओर परिवर्तन इतना ही शीघ्र होता था।
प्रारम्भिक दिनों में भी, जब उनके सम्बन्ध में ऐसा खयाल किया जाता था कि वह प्रत्येक वस्तु के प्रति उदासीन हैं, उनमें हास-परिहास की प्रवल भावना विद्यमान थी। उन्होंने कई परिहासो के सम्बन्ध में तो बाद के वर्षों मे बताया। एक वार का जिक्र है कि उनकी मां और अन्य भक्तजन पवजहाकुनरू मे श्रीभगवान् के दशनो के लिए आये । जव यह लोग नगर में भोजन के लिए जाने लगे तो उन्होने इस डर से कि कही वह भाग न जाएं, बाहर से दरवाजे वी घटखनी लगा दो। श्रीभगवान् यह जानते थे कि दरवाजे की घटखनी लगी