Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 170
________________ १४५ उपदेश स्पष्टत स्वीकार किया था कि वे गुरु हैं। उन्होने एक बार उनसे कहा था, "दो बातें आपको करनी हैं, प्रथम तो अपने से बाहर गुरु की खोज करना और फिर अन्दर गुरु की खोज करना । पहली खोज आपने पहले ही कर ली है।" परन्तु जिस प्रकार उन्होंने मेरे वक्तव्य की स्वीकृति द्वारा गुरु की पुष्टि की, वह अधिक स्पष्ट थी। आश्रम में कुछ सप्ताह रहने के बाद मैंने देखा कि श्रीभगवान् वस्तुत गुरु हैं और वह लोगो को दीक्षा देते तथा उनका मार्गदर्शन करते हैं । मैंने यूरोप के अपने मित्रो को इस सम्बन्ध मे पत्र लिख कर सूचित किया । पत्र भेजने से पहले इसे श्रीभगवान् को दिखाया और उनकी अनुमति मांगी। उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी और पत्र मुझे लौटाते हुए कहा, "माप यह पत्र भेज दें।" ___ गुरु होने का अभिप्राय है दीक्षा और उपदेश देना । ये दोनो अविभाज्य हैं। दीक्षा के प्रारम्भिक कार्य के बिना उपदेश नही होता और दीक्षा का तब तक कोई अभिप्राय नही जब तक कि इसके बाद उपदेश न दिया जाये। इसलिए कभी-कभी प्रश्न यह रूप धारण कर लेता था, श्रीभगवान् उपदेश देते हैं या दीक्षा। __ जब श्रीमगवान् से यह प्रश्न किया जाता कि क्या वह दीक्षा देते हैं, तव वह इस प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं देते थे। अगर उत्तर 'न' मे होता तो वह निश्चय ही 'न' कह देते । परन्तु अगर 'हाँ' कहते तो दीक्षा के लिए अनुचित मांगो से बचाव कैसे होता और कुछ मांगो को स्वीकृति तथा अन्यों का निषेध आवश्यक हो जाता । इस प्रकार व्यक्तियों को स्वय निर्णय न करने देकर श्रीभगवान् का यह निणय स्वच्छन्द प्रतीत होता। उनका उत्तर देने का सर्वमामान्य रूप मेजर चैडविक को दिये गये उत्तर में देखा जा सकता है। "दीक्षा के तीन प्रकार हैं स्पश द्वारा, दशन द्वारा और मौन द्वारा।" श्रीभगवान प्राय एक अवैयक्तिक सैद्धान्तिक वक्तव्य दिया करते थे, जिसमें विशिष्ट प्रश्न का उत्तर निहित होता था। यह वक्तव्य सवविदित है, हिन्दुओ के अनुसार दीक्षा के तीन प्रकार एक पक्षी, मछली और कछुए के उदाहरण से स्पष्ट किये जाते हैं। पक्षी अपने अण्हों को मेने के लिए उन पर वैठता है, मछली को केवल उनकी ओर देखना भर पडता है और कछए को केवल उनका ध्यान करना पड़ता है । दशन या मौन द्वारा दीक्षा इस युग मे अत्यन्त दुलम हो गयी है, यह अरुणाचल की, दक्षिणामूत्ति की मौन दीक्षा है और दीक्षा की यह पुकार श्रीभगवान् द्वारा उपदिष्ट आत्म-अन्वेपण के प्रत्यक्ष मार्ग के विशेपत यनुरूप है । इसलिए यह आन्तरिक रूप से और एक सुविधाजनक कवच के म्प में उपयोगी है। दमन द्वारा दीक्षा वास्तविक चीज थी। श्रीभगवान् भक्त की ओर मुख

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