Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 172
________________ उपदेश १४७ भक्तो-एक चैक कूटनीतिश और एक मुस्लिम प्रोफेसर ने जब श्रीभगवान् से यह पूछा कि यह आश्वासन केवल हाज़ पर लागू होता है या सभी भक्तो पर तो उन्हें श्रीभगवान् ने उत्तर दिया, "सभी पर।" एक अन्य अवसर पर, जब एक भक्त ने अपने में कोई प्रगति न देखी तो वह अत्यन्त निराश हो गया और कहने लगा, "मुझे भय है कि अगर मेरी यही दशा रही तो मैं नक मे चला जाऊंगा।" इस पर श्रीभगवान ने उत्तर दिया, "अगर तुम नक मे जाओगे, भगवान् भी तुम्हारे पीछे जायेंगे और तुम्हे वापस ले आयेंगे।" ___ भक्त के जीवन की परिस्थितियो को गुरु इस प्रकार ढाल देते है, जिससे उसकी साधना पूर्ण हो । एक भक्त से श्रीभगवान् ने कहा था, "स्वामी हमारे अदर भी हैं और बाहर भी, वह तुम्हे अन्तर्मुख करने के लिए परिस्थितियाँ पैदा कर देता है और साथ ही आपके अन्तर को केन्द्राभिमुख होने के लिए तैयार करता है।" ___अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो हार्दिक भाव से श्रीभगवान् की ओर श्रद्धाधनत नहीं होता था, उनसे यह पूछता कि क्या वे उपदेश देंगे तो वे रहस्यमय उत्तर दे देते या कोई उत्तर नही देते थे। दोनो ही अवस्थाओ मे यह निषेधात्मक उत्तर समझा जाता । तथ्य तो यह है कि उनकी दीक्षा की तरह उनका उपदेश भी मौन होता था। मौन भाव से मन को अपेक्षित दिशा मे मोड दिया जाता था । भक्त से ऐसी आशा की जाती यो कि वह यह सब कुछ समझ जायेगा। बहुत कम व्यक्तियो को शाब्दिक आश्वासन की आवश्यकता होती थी। ___ श्री वी० वेंकटरमण, जिनका पहले जिक्र आ चुका है, की कहानी से यह स्पष्ट हो जायेगा । अपने यौवन मे वे श्री रामकृष्ण के परम भक्त थे, परन्तु उन्होंने एक जीवित जाग्रत देहधारी गुरु की आवश्यकता अनुभव की । इसलिए उन्होंने वही उत्कण्ठा के साथ उनसे प्राथना करते हुए कहा, "स्वामिन्, मुझे एक जीवित गुरु प्रदान करो, जो कि आप जैसा ही पूण हो।" इसके शीन वाद उन्होंने श्रीरमण महर्षि के सम्बन्ध मे सुना। महर्षि को पहाडी को तलहटी में स्थित आश्रम में आये हुए कुछ ही वप हुए थे । वे उनके चरणो में फूलो की भेंट लेकर गये । जव वे सभा-भवन मे पहुंचे, उस समय वहाँ अन्य कोई भी व्यक्ति उपस्थित नहीं था। श्रीभगवान् तस्त पर विश्राम कर रहे थे, उनके पीछे दीवार पर श्री रामकृष्ण का चित्र था, जिनसे वेंकटरमण ने प्राथना को थी। श्रीभगवान् ने फूलों की माला के दो टुकड़े कर दिये, माला का एक टुकहा नहोंने सेवक से चित्र पर और दूसरा मन्दिर के लिंग पर रखने के लिए कहा । वैकटरमण को बहा हलकापन अनुभव हुआ। वह अपने गन्तव्य

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