Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 158
________________ श्रीभगवान् का दैनिक जीवन "ऐसा लगता है कि दो बजे तक किसी को सभा-भवन में नहीं आने दिया जाता।" वही कठिनाई से श्रीभगवान् को विश्राम के लिए मनाया गया । मध्याह्नोत्तर सभा-भवन मे नये चेहरे दिखायी देते हैं क्योकि बहुत कम भक्त सारा दिन वहाँ बैठते हैं । जो लोग आश्रम के निकट रहते हैं। उन्हें भी प्राय गृहस्थी के या अन्य काय सम्पन्न करने होते हैं और कइयो को कुछ निश्चित समय के लिए काय पर जाना पड़ता है। श्रीभगवान्, प्रश्नो का उत्तर देने के अतिरिक्त, कभी भी सिद्धान्त के सम्बन्ध में बात नहीं करते या बहुत कम वात करते हैं। और जब वह प्रश्नो का उत्तर देते हैं तो वह धर्माध्यक्षो की सी गम्भीरता से नहीं, अपितु वार्तालाप के रूप में प्राय हास-परिहास के साथ उत्तर देते हैं । चूकि वह ऐसा कहते हैं, इसलिए यह जरूरी नहीं कि प्रश्नकर्ता उसे स्वीकार कर ले, जब तक वह पूरी तरह आश्वस्त न हो जाये, वह उनसे विचार-विमश कर सकता है। एक थियोसोफिस्ट श्रीभगवान से प्रपन करता है कि क्या वह अदृश्य शिक्षको की खोज को स्वीकृति प्रदान करते हैं । वह ध्यग्य करते हुए कहते हैं, "अगर वह अदृश्य हैं तो आप कैसे उन्हें देख सकते हैं ?" थियोसोफिस्ट का उत्तर है, "चेतनता मे ।" इस पर श्रीनगवान् कहते हैं, "चेतनता मे कोई भेद-भाव नहीं होता।" ___एक दूसरे आश्रम का व्यक्ति प्रश्न करता है, "क्या मेरा मह कथन ठीक है कि अन्तर केवल यह है कि आप संसार को वास्तविक नही समझते जव कि हम इसे वास्तविक समझते हैं।" श्रीभगवान् विवाद से बचने के लिए परिहास करते हुए कहते हैं, "इसके विरुद्ध, चूंकि हम कहते हैं सत्ता एक है, हम ससार को पूर्ण वास्तविकता प्रदान करते है, और सबसे बड़ी बात यह है कि हम भगवान् को पूण वास्तविकता प्रदान करते हैं, परन्तु यह कहकर कि सत्ताएं तीन हैं, आप ससार को केवल एक-तिहाई वास्तविकता प्रदान करते हैं और भगवान् को भी एक-तिहाई।" हर काई इस हंसी में सम्मिलित होता है परन्तु इसके बावजूद कई भक्त आगन्तुक के साथ विवाद करने लगते हैं और फिर श्रीभगवान् कहते हैं, "इस प्रकार के वाद-विवादो से कोई बहुत लाभ नहीं होता।" । सिद्धान्तवादी और तार्किक दापानिक इस प्रकार के वाद-विवाद पसन्द करते हैं और लोगो को इस गलत विश्वास की ओर ले जाते हैं कि वह एक शिक्षक को शिक्षा का दूसरे शिक्षक की शिक्षा के साथ विरोध प्रकट कर रहे हैं, परन्तु वस्तुत ऐमा नहीं है । सिद्धान्त शिक्षा नहीं है बल्कि वह मानसिक आधार है जहाँ से आध्यात्मिक शिक्षा का व्यावहारिक काय सचालित होता है और इसीलिए भिन्न तथा प्रत्यक्षत संघर्षरत सिद्धान्त आध्यात्मिक मार्ग के

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