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रमण महर्षि था। साधु के भेप मे लोगो की आँखो मे धूल झोकता था। इस व्यक्ति ने श्रीभगवान् के कारण लाभ उठाना और ख्याति अर्जित करनी चाही । यह सोच कर कि तरुण स्वामी अपनी सन्तवृत्ति के कारण वुराई का प्रतिरोध नहीं करेंगे, उसने उनके गुरु होने का ढोग रचा। वह दर्शको से कहने लगा, “यह तरुण स्वामी मेरा शिष्य है।" या "हां, बच्चे को कुछ मिठाई दे दो,” और वह श्रीभगवान् से कहता, "हाँ, तो मेरे बच्चे वेकटरमण, मिठाई ले लो।" या वह अपने तथाकथित शिष्य के लिए वाजार जाकर चीजें खरीदने का ढोग रचता । वह इतना धृष्ट था कि जब वह श्रीभगवान् के साथ अकेला होता तो वह उन्हे उद्दण्ड भाव से कहा करता, "मैं दर्शको से कहूँगा कि मैं तुम्हारा गुरु हूँ और उनसे पैसे ले लूंगा। इसमे तुम्हारी कोई हानि नही, इसलिए तुम मेरा विरोध मत करना।"
इस व्यक्ति के अभिमान और उद्दण्डता का कोई अन्त नही था । और एक रात को उसने कन्दरा के बरामदे मे टट्टी तक कर दी। अगले प्रात काल वह अपने फालतू कपडे, जिनमे कुछ रेशमी और जगेदार थे कन्दरा मे छोडकर वाहर चला गया। श्रीभगवान् ने कुछ नही कहा । उस प्रात काल वह पलानीस्वामी के साथ एक पवित्र स्थान की यात्रा के लिए चल पडे और चलने से पहले पलानीस्वामी ने बरामदे को धोया, वालानन्द के कपडे वाहर फेंक दिये और कन्दरा को ताला लगा दिया । __ जव वालानन्द वापस लौटा, वह वहत ऋद्ध हआ । पलानीस्वामी को डांटते हुए उसने कहा कि उसने उसके कपडे छूने का साहस कैसे किया। श्रीभगवान् को उसने आदेश दिया किवह तत्काल ही उसे दूर भेज दें। न तो पलानीस्वामी ने और न श्रीभगवान् ने इसका कोई जवाब दिया या इस ओर ध्यान दिया । क्रोध मे बालानन्द ने श्रीभगवान् पर थूक दिया। फिर भी श्रीभगवान् अनुद्विग्न भाव से बैठे रहे । उनके साथ जो शिष्य थे, वह भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया के विना शान्त भाव से बैठे रहे। नीचे की कन्दरा मे रहने वाले एक भक्त ने यह सव सुन लिया और वह यह चिल्लाता हा दीड कर आया, “तुम्हारी यह हिम्मत कि तुम म्वामी पर थूको।" इस भक्त को चूर्त वालानन्द पर हाथ उठाने से बड़ी मुश्किल से रोका गया। वालानन्द ने अनुभव किया कि वह बहुत आगे बढ गया है और कुशल इमी मे है कि वह तिरुवन्नामलाई छोड दे। वह डीग मारकर कहने लगा कि पहाडी मे रहने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है। वह वहां से चला गया। रेलवे स्टेशन पहुँचकर, वह विना टिकट लिए दूसरे दरजे के रेल के डिब्बे मे घुस गया। एक तरुण दम्पत्ति भी उसी डिव्वे मे थे। उसने उस तरुण को भाषण देना और उम पर हुक्म चलाना शुरू किया। जब उस तरुण ने बालानन्द की ओर कोई ध्यान