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रमण महर्षि
दौडाई और नीचे चला गया । यह सवत्र घूमता रहा जोर मैं इसका अनुमरण करता रहा ताकि लापरवाह दर्शक या मोर इसे कोई नुकसान न पहुँचाएँ । दो मोगे ने इसकी ओर वडे कुतूहल से देखा, परन्तु यह शान्त भाव से एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरता रहा और अन्त मे आश्रम के दक्षिण-पूर्व मे चट्टानो मे छिप गया ।"
एक दिन श्रीभगवान् सूर्योदय से पूर्व दो भक्तो के साथ आश्रम -पाकशाला के लिए सब्जी काट रहे थे । इनमे से एक भक्त लक्ष्मण शर्मा अपने साथ अपना कुत्ता लाये थे । यह कुत्ता अत्यन्त सुन्दर और श्वेत रंग का था और हर्षोन्मत्त हो उछल-कूद मचा रहा था । इसने भोजन लेने से इन्कार कर दिया। श्रीभगवान् ने कहा, "देखो, यह कुत्ता कितना आनन्दमग्न है । यह कोई ऊँची आत्मा है जिसने कुत्ते का रूप धारण किया है ।"
प्रो० वेंकटरमैया ने अपनी डायरी में आश्रम के कुत्तो की अद्भुत भक्ति का वर्णन किया है
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"सन् १९२४ मे आश्रम मे चार कुत्ते थे । श्रीभगवान् कहते थे कि जब तक वह स्वयं भोजन नही कर लेते थे कुत्ते भी भोजन नही करते थे । पण्डित ने परीक्षा लेने के लिए कुत्तो के सामने भोजन रखा, परन्तु उन्होने इसका स्पश तक नही किया । कुछ देर बाद श्रीभगवान् ने एक ग्रास खाया और तत्काल ही कुत्ते भोजन पर टूट पडे और इसे चट कर गये ।"
आश्रम के अधिकाश कुत्तो को कमला कुतिया ने जन्म दिया था। जब वह स्कन्दाश्रम मे आई थी वह वहुत छोटी थी । भक्तो ने इस कुतिया को दूर भगाने का यत्न किया क्योकि उन्हें यह भय था कि प्रतिवर्ष पिल्लो को जन्म देने के कारण आश्रम उनसे भर जायगा । परन्तु वह वहाँ से गई नहीं | इस प्रकार कुत्तो का एक वडा परिवार वन गया। इन सव के साथ अत्यन्त स्नेहमय वर्ताव किया जाता था । जब कमला ने पहले पहल पिल्लों को जन्म दिया, उसे नहलाया गया, हल्दी मली गयी, उसके माथे पर सिन्दूर लगाया गया और आश्रम मे उसे स्वच्छ स्थान दिया गया, जहाँ वह अपने पिल्लो के माय दस दिन तक रही । दसवें दिन नियमित महभोज के साथ उसका शुद्धिसस्कार किया गया । वह बडी समझदार और उपयोगी कुतिया थी । श्रीभगवान् प्राय उसे नवागतुको को पहाडी के चारो ओर घुमाने का कार्य सौंपते और कहा करते, "क्मला, इस आगतुक को घुमा लाओ" और वह उसे पहाडी के चारो ओर प्रत्येक प्रतिमा, तालाव और मन्दिर के पास ले जाती ।
セ आश्रम मे एक अत्यन्त अद्भुत कुत्ता, हालाँकि यह कमला की सन्तान नही था, चिन्ना करुप्पन ( लिटल ब्लैकी ) था । श्रीभगवान् ने स्वयं उमरे