________________
१२४
रमण महर्षि
से देखने वाले दशक को ऐसा लगता था कि बहुत थोडा कार्य हो रहा है परन्तु वस्तुत वहाँ महान कार्य सम्पन्न हो रहा था।
आयु के वढने के साथ-साथ श्रीभगवान् के दैनिक जीवन मे परिवतन आ गया । ज्यो-ज्यो भगवान् का शरीर दुबल होता जाता था त्यो त्यो दैनिक चर्या और प्रतिबन्ध कठोर होते जाते थे। जव श्रीभगवान् अत्यन्त दुवल हो गये, उनसे मिलने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं था। दिन हो चाहे रात, हर समय उनसे मिला जा सकता था। सोते समय भी वह भवन के दरवाजे बन्द नहीं करवाते थे ताकि कोई दर्शनार्थी उनसे मिलने से वचित न रह जाये । प्राय वह रात को बहुत देर तक भक्तो से वातें करते रहते थे। इन भक्तो मे से कई, सुदरेश ऐय्यर की तरह गृहस्थी थे, जिन्हे अगले दिन काम पर जाना होता था। इन भक्तो का ऐमा अनुभव था कि आश्रम मे श्रीभगवान् के साथ एक रात रहने के उपरान्त, निद्रा के अभाव मे उन्हे अगले दिन किसी प्रकार की कोई थकावट अनुभव नहीं होती थी।
आश्रम का दैनिक जीवन सुव्यवस्थित और नियमित था । व्यवस्था और नियमितता श्रीभगवान् के जीवन के आदश थे, जिन्हे उन्होने अपने जीवन में ढाला था और जिनके पालन के लिए वह दूसरो से कहा करते थे। इस प्रकार आश्रम की प्रत्येक वस्तु स्वच्छ और अपने उचित स्थान पर थी। आश्रम के भवनो की सफेदी की हुई बाहर की दीवारें सूय के प्रकाश मे चमकती थी, फर्श इतने स्वच्छ ये कि श्वेत वस्त्रधारी भक्तजन अपने कपडो के मैले होने की चिन्ता किये विना निस्सकोच वहाँ वैठ सक्ते ये। भगवान् की शय्या पर विछी हुई कशीदाकारी की हुई चादरे प्रति दिन वदली जाती थी और हमेशा साफ सुथरी रहती थी और उन्हे ठीक ढग से तह किया जाता था।
मन् १९२६ मे ही भगवान् ने पहाडी की प्रदक्षिणा करना छोड दिया था। आश्रम मे आने वाले लोगो की सख्या प्रति दिन वढ रही थी। उस पर नियत्रण करना सम्भव नही था। जव श्रीभगवान् बाहर जाते तो कोई भी व्यक्ति आश्रम मे रहना पसन्द नहीं करता था। हर कोई उनके साथ जाना चाहता था। इसके अतिरिक्त, यह भी आशका थी कि श्रीभगवान् के जाश्रम मे उपस्थित न होने की स्थिति मे, भक्तगण दशनो के लिए आये और उन्ह वहाँ न पाकर निराश होकर वापम न चले जायं । अनेक नवमरो पर उन्होंने इस ओर सकेत किया था कि जो भी व्यक्ति उनके दशनो के लिए जाये उमे गवा न जाये । श्रीभगवान् कहा करते थे कि वह इसीलिए पहाडी की तलहटी म रहते हैं और म्वन्दाश्रम नहीं जाते क्योकि वहाँ भक्तजन मरलता से नहीं पहुँच मक्ते । श्रीभगवान् ने न केवल पहाडी का चक्कर लगाना छोड दिया बल्कि चाहे जो भी कारण हो, वह मिवाय प्रात और साय भ्रमण के आश्रम