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पशु
१११ छतो को वढा दिया गया था। इससे वन्दरी का आश्रम में प्रवेश कठिन हो गया था । बहुत से वन्दरो को पकड कर जगल मे छोड़ दिया गया था या उन्हे नगरपालिका द्वारा पकड कर, उन पर प्रयोग करने के लिए अमेरिका भेज दिया गया था।
सन् १९०० से लेकर, जव श्रीभगवान् सर्वप्रथम पहाडी पर रहने के लिए गये, सन् १९२२ तक, जब वह उसकी तलहटी में स्थित आश्रम मे रहने के निए आये, वह वन्दगे से बहुत घुल मिल गये थे। वह वन्दरो को, ज्ञानी की मी म्नेह और सहानुभूतिपूण तथा अपनी स्वभावत तीक्ष्ण दृष्टि से देखा करते थे। उन्होंने उनके क्रन्दन का अथ समझ लिया था और वह उनकी व्यवहार सहिता तथा सरकार की पद्धति से परिचित हो गये थे। उन्होंने यह पता लगाया था कि वन्दगे की प्रत्येक टोली का अपना राजा और स्वीकृत क्षेत्र होता है। अगर कोई दूसरी टोली इम क्षेत्र का अनिक्रमण करती है तो दोनो टोलियो मे युद्ध छिड़ जाता है। परन्तु युद्ध या शान्ति चर्चा करने से पूर्व एक टोली अपना राजदूत दूसरी टोली के पास भेजती है। वह आगतुको मे कहा करते थे कि वन्दर उन्हे अपनी जाति का समझते हैं और अपने अगडो में मव्यम्य बनाते हैं। __ “साधारणत वन्दर पालतू वन्दर का बहिष्कार कर देते हैं परन्तु इस सम्बन्ध मे मैं अपवाद था। जब कभी बन्दरो मे कोई गलतफहमी पैदा हो जाती है या लडाई-झगड़ा उठ खडा होता है, वह मेरे पास आते हैं और मैं उन्हे पृथक करके उन्ह प्रान्त कर देता है। इस प्रकार उनका झगडा वन्द करा देता है। एक बार एक छाट बन्दर को उसकी टोली के एक बहे वन्दर ने काट लिया और उमे आश्रम के पाम निम्महाय अवस्था मे छोड दिया । वह छोटा वन्दर लंगडाता हुआ विरूपाक्ष पन्दग स्थित आश्रम मे आया, इसलिए हमने उमका नाम नोंदी (लंगडदीन) रख दिया। जब पांच दिन बाद उसकी टोली के बन्दर आये, तो उन्होंने देखा कि उसकी देखभाल भली भांति की जा रही है, फिर भी वह उसे अपने साथ ले गये। इसके बाद से, आश्रमवामियों की बची-खुची बाने की चीजो के लिए वन्दर आधम के वाहर आया करते परन्तु नोन्दी सीधा ही मेरी गोद में आ जाता । वह बडी सफाई से खाता था। जब चावलो की पत्तल उसके मामने रखी जाती, वह एक भी चावल पत्तल के बाहर नहीं फेंकता था। अगर पत्तल के बाहर चावल चने भी जाते तो वह इन्हें इक्टठे कर लेता और जाने से पहले पत्तल विलकुल साफ कर जाता।
"वह वडा मवेदनशील भी था। एक वार, किसी कारणवश, उसने कुछ भोजन वाहर फेंक दिया और मैंने उसे झिडक दिया-क्या बात है । बाना चया बगव कर रहे हो ।' उसने एकाएक मेरी आँख पर प्रहार किया और