Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ १०० रमण महर्षि प्रकाश और शान्ति की प्राप्ति सम्भव है। णिक्षर न णक्तिया को आत्म वनिदान का एक रुप समझता है । "यह विचार कि वह शिक्षक नही है जिसन विभिन्न रहस्यमयी क्तियो वो निरन्तर अभ्यास और प्राथना द्वारा सिद्ध कर लिया है, बिलकुल गलत है । किसी भी शिक्षक न रहस्यमयी शक्तियो की तनिक भी चिन्ता नही की, क्योकि अपने दैनिक जीवन मे उसे इनकी आवश्यकता नही पडती । " जो चमत्कारिक घटनाएँ हम दखते है वे अद्भुत और आश्चयमयी होती हैं परन्तु सबसे अधिक आश्चयमयी, जिसे कि हम अनुभव नही करते एकमात्र वह असीम शक्ति है जो ( ) उन मत्र घटनाओ के लिए उत्तरदायी है जिह हम देखते हैं, और (ख) उन घटनाओ को देखने के कार्य के लिए उत्तरदायी है । "जीवन, मृत्यु और चमत्कारी की इन सब परिवर्तित होती हुई वस्तुओं पर अपना ध्यान केन्द्रित मत करो। उन्ह देखने या निरीक्षण करने के वास्तविक कार्य के सम्बन्ध मे भी मत सोचो, परन्तु केवल उसी का विचार करो जो इन सब वस्तुओ को देखता है, जो इन सब के लिए उत्तरदायी है । पहले यह लगभग असम्भव प्रतीत होगा परन्तु धीरे-धीरे आप इसका परिणाम अनुभव करने लगेंगे। इसके लिए वर्षो तक निरन्तर दैनिक साधना की आवश्यकता है और इस प्रकार ही एक शिक्षक का निर्माण होता है । प्रतिदिन इस अभ्यास के लिए पन्द्रह मिनट दे । अपन मन को द्रष्टा पर स्थिर रखें। यह आपके अन्दर है । उसकी खोज के लिए हम्फ्रीज़ की अपेक्षा न करें ।" श्रीभगवान् ने उन्हें अपनी नोकरी की ओर ध्यान देने और साथ ही चिन्ता करने का परामर्श दिया । कुछ वप तक उन्होने ऐसा किया, फिर वह सेवा निवृत्त हो गये । हम्फ्रीज़ महोदय पहले ही कैथोलिक ये और सभी धर्मो की एकता मे विश्वास रखते थे, इसलिए उन्होंने धर्म परिवर्तन की कोई आवश्यकता न समझी, बल्कि इगलैण्ड वापस लौट गये। यहां आकर उन्होंने एवं मठ मे प्रवेश ले लिया । थियोसा फिस्ट श्रीभगवान् की सहिष्णुता और दयालुता मे सभी प्रभावित होते थे । वह केवल सभी धर्मो के मत्य को स्वीकार नही करते थे, क्योकि प्रत्येक याध्यात्मिक पुरुष से ऐमी अपेक्षा की जाती है, परन्तु अगर कोई स्कूल या समूह या आश्रम आध्यात्मिकता के प्रभार करने का प्रयत्न कर रहा होता तो वह उसके शुभ कार्य की प्रशमा करते, भने ही उसके तरीके उन

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230