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अरुणाचल
के रूप में निवास कर रहा है, परम चैतन्य की दिव्य दृष्टि गुल जाती है और वह अपने को विशुद्ध ज्ञान के रूप में प्रकट करता है ।"
जिस कन्दरा मे श्रीभगवान् सवप्रथम गये और जहां वह सबसे अधिक देर ठहर, वह दक्षिण पूर्वी ढलान पर है। इस कदरा की विरूपाक्ष नामक मन्न वे नाम पर, जो वहाँ रहते थे और सम्भवत जिन्ह तेरहवी शताब्दी में वहाँ दफनाया गया था, विरूपाक्ष कहते हैं । बडी विचित्र बात तो यह है ि कन्दरा का आकार ओ३म् से मिलता-जुलता है। स्मारक बन्दरा में बिन अन्दर है और ऐसा कहा जाता है कि अन्दर ओ३म् को ध्वनि मुनी जा सकती है ।
नगर स्थित विरूपाक्ष मठ के ट्रस्टियों का कन्दरा पर सापत्तिक अधिकार था । वे कार्तिकी के वार्षिक समारोह के अवसर पर कन्दरा पे दणको के लिए आने वाले तीथयात्रियो पर एक छोटा-सा कर लगाया करते थे । जिम समय श्रीभगवान् वहाँ गये उस समय कर नही लगाया जाता था क्योंकि दो दला में कन्दरा के स्वामित्व के सम्बन्ध मे मुकद्दमेवाजी चल रही थी । जब मुकद्दमे का फैसला हो गया तव सफल दल ने पुन कर लगाना शुरू कर दिया। अस्तु, इस समय तक दशनार्थियों की संख्या बहुत वढ गयी थी और वय भर न कि केवल कार्तिको के अवसर पर उनका तांता लगा रहता था। चूँकि दणनार्थी कन्दरा में श्रीभगवान् की उपस्थिति के कारण वहाँ आते थे इसलिए यह कर एक प्रकार से श्रीभगवान् के दशनो के लिए था । श्रीभगवान् को यह बात पसन्द नहीं थी, इसलिए वह कन्दरा से बाहर निकलकर, इसके सामने एक छायादार वृक्ष के नीचे आकर बैठ गये । इस पर ट्रस्टियो के एजेण्ट ने अपना कर इकट्ठा करने का स्थान इस प्रकार वदल लिया कि श्रीभगवान् जिस वृक्ष के नीचे बैठते थे वह भी ट्रस्टियों की अधिकार -परिधि में आ गया। अब श्रीभगवान् ने कन्दरा छोड दी और वह नीचे सद्गुरुस्वामी कन्दरा मे चले गये और फिर वह कुछ देर ठहरने के बाद दूसरी कन्दरा में चले गये। विरूपाक्ष कन्दरा मे आने वाले दशनार्थियों का तांता वन्द हो गया । जव ट्रस्टियो ने यह अनुभव किया कि उनके इस काय से उन्हें तो कोई लाभ नहीं हुआ, स्वामी को असुविधा हुई है तो उन्होंने उनसे पुन कन्दरा में लौटने की प्रार्थना की ओर यह वचन दिया कि जब तक स्वामी कन्दरा में रहेंगे तब तक वह किसी प्रकार का कर नही लगाएँगे । इस शत पर वह वापस लोट जाये ।
गरमी के महीनों में विरूपाक्ष की कन्दरा वहुत अधिक तप जाती है । पहाडी की तराई में मुलाईपाल तीय तालाब के निकट एक कन्दरा है जो ठण्डी है और वहाँ पीने के लिए शुद्ध पानी भी मिल जाता है। इसके ऊपर एक छायादार आम का वृक्ष है, जिसकी वजह से इस कन्दरा का नाम मात्र कन्दरा