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अरुणाचल
और तब भैंस की ओर इशारा करते हुए शेपाद्रिस्वामी ने उससे कहा, "मुझे बताओ यह क्या है ?"
उसने भोलेपन से उत्तर दिया, "यह भैस है ।" इस पर शेपादिस्वामी चिल्ला उठे, "क्या यह भैंस है ? भैंस ? तुम भैंस होगे। इसे ब्राह्मण कहो । " इतना कहकर वह मुड पडे और दूर चले गये ।
जनवरी सन् १९२६ मे शेपाद्रिस्वामी का स्वगवास हुआ । सन्तो की तरह, उनका शरीर जलाया नहीं गया बल्कि इसे दफनाया गया । श्रीभगवान् मौन भाव से यह सब देखते रहे । अब भी तिरुवन्नामलाई मे शेषाद्विस्वामी की पूजा की जाती है और उनके मृत्यु समारोह के अवसर पर उनके चित्र का सारे नगर जुलूस निकाला जाता है ।
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श्रीभगवान् ने पहाड़ी पर जो प्रारम्भिक वर्ष व्यतीत किये, उस दौरान वे धीरे-धीरे वाह्य क्रियाकलाप की ओर अभिमुख हो रहे थे । उन्होने चलनाफिरना, पहाडी की छानवीन करना, पुस्तकें पढना और लिखना प्रारम्भ कर दिया था । पद्मनाभ नाम के एक स्वामी थे जिन्हे उनकी लम्बी-लम्बी जटाओ के कारण जटाई स्वामी भी कहते थे । पहाडी पर उन्होंने एक आश्रम बना रखा था और उनके पास आश्रम में आध्यात्मिक ज्ञान सम्वन्धी तथा आयुर्वेद जैसे आध्यात्मिक आधार वाले प्रयोगात्मक ज्ञान सम्वन्धी कई ग्रन्थ थे श्रीभगवान् पद्मनाभ स्वामी से उनके आश्रम में मिलने जाया करते और इन ग्रन्थो का अवलोकन किया करते। उन्होंने तत्काल ही इन ग्रन्यो की विपयवस्तु पर इतना अधिक आधिपत्य प्राप्त कर लिया और उसे कण्ठस्थ कर लिया कि वे न केवल इसे दोहरा सकते थे बल्कि इसका सूक्ष्मतम विवरण भी प्रस्तुत कर सकते थे ।
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पुराणो मे ऐसा कहा गया है कि मरुणाचल की उत्तरी ढलान पर, चोटी के निकट अरुणागिरि योगी के नाम से विख्यात एक सिद्ध पुरुष एक पीपल के वृक्ष के नीचे मौन भाव से उपदेश देते हुए, ऐसे स्थान पर बैठे हुए हैं जहाँ पहुँचना लगभग असम्भव है । तिरुवनामलाई के भव्य मन्दिर में उनकी पवित्र स्मृति में एक मण्डप बना हुआ है । कहानी में ऐसा वर्णित है कि यद्यपि अरुणाचल मौन दीक्षा के माध्यम से लोगो को आत्म-अन्वेषण के माग पर मुक्ति की ओर ले जाते हैं तथापि उनकी यह कृपादृष्टि आध्यात्मिक दृष्टि से अकारावच्छ इस युग के लोगों के लिए अप्राप्य हो गयी थी । तथापि, कहानी का प्रतीकात्मक अथ इमे शाब्दिक रूप से असत्य नही ठहराता । १९०६ के लगभग एक दिन जब श्रीभगवान् पहाड़ी की उत्तरी ढलान पर घूम रहे थे कि उन्हें एक शुष्क जलधारा में एक वडा-सा पीपल के वृक्ष का पत्ता दिखायी दिया। यह पत्ता इतना वहा था कि इस पर भोजन परोसा जा सकता