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रमण महपि
कहानी में आगे वर्णन आता है, प्रकाश-रेखा का प्रकाश आंखो को चौंधिया देने वाला था अत शिव ने अपने को अरुणाचल पहाड़ी के रूप मे प्रकट किया और यह घोषणा की जिस प्रकार चन्द्रमा अपना प्रकाश सूर्य से ग्रहण करता है, इसी प्रकार अन्य पवित्र स्थान अपनी पवित्रता अरुणाचल से ग्रहण करेंगे । यही वह एकमात्र स्थान है जहाँ मैंने उन लोगो के लिए जो मेरी उपासना करना चाहते है और प्रकाश ग्रहण करना चाहते हैं, यह रूप धारण किया है । अरुणाचल स्वय ओ३म् है । में प्रतिवप कार्तिकी के दिन शान्तिदायी दीपस्तम्भ के रूप मे इस पहाडी के शिखर पर प्रकट होऊँगा ।" यह न केवल स्वय अरुणाचल की पवित्रता वल्कि अद्वैत सिद्धान्त की प्रसिद्धि तथा आत्म-अन्वेषण के मार्ग, जिसका अरुणाचल केन्द्र है, की ओर निर्देश करता है । श्रीभगवान् की निम्न उक्ति " अन्त मे हर व्यक्ति को अरुणाचल आना पडेगा " मे हर कोई उस अथ को समझ सकता है ।
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तिरुवन्नामलाई मे आगमन के दो वप से भी अधिक समय के बाद श्रीभगवान् ने पहाडी पर रहना शुरू किया। तब तक वह निरन्तर किसी मन्दिर मे ठहरते थे । १८९८ की समाप्ति के समय ही उन्होने पवजहाक्कुनरु स्थित छोटे से मन्दिर मे आश्रय लिया । शताब्दियों पहले महान् गौतम ऋषि ने इस स्थान को पवित्र किया था । यही श्रीभगवान् की माता उन्हें मिली थी । फिर उन्होने अरुणाचल कभी नही छोडा । अगले वर्ष के शुरू मे वह पहाडी पर स्थित एक कन्दरा मे चले गये और १९२२ तक वह किसी न किसी कन्दरा मे रहे । इसके बाद वह नीचे पहाडी की तराई मे आ गये । यही वतमान आश्रम की स्थापना हुई और यही उन्होने अपने जीवन के शेष वर्षं व्यतीत किये ।
पहाडी पर रहते समय, श्रीभगवान् प्राय सारा समय पहाडी की दक्षिणी ढाल पर रहते थे । आश्रम भी दक्षिण मे दक्षिणामूर्ति मण्डप के पास है । 'दक्षिणी पाश्व' भगवान् के १०८ नामो मे से एक है, जिनका गान उनके स्मारक पर किया जाता है । यह नाम सामान्यत उसी प्रकार आध्यात्मिक प्रमाण का प्रतीक है जिस प्रकार सद्गुरु वह स्तम्भ है, जिसके चारो ओर ससार चक्कर काटता है । परन्तु यह विशेषत दक्षिणामूर्ति का एक नाम है । दक्षिणामूर्ति मौनभाव से उपदेश देने वाले शिव हैं । इस अध्याय के प्रारम्भ मे उद्धृत पद मे श्रीभगवान् ने अरुणाचल और दक्षिणामूर्ति को एक बताया है, नीचे के पद मे वह रमण और अरुणाचल को एक बताते हैं
“विष्णु से लेकर सभी व्यक्तियो के कमलाकृति हृदयो की गहराइयो मे परम चैतन्य के रूप मे परमात्मा का प्रकाश विराजमान है जो वही है जो अरुणाचल या रमण है । जव व्यक्ति का मन प्रेमार्द्र हो जाता है और वह हृदय की उन गहराइयो मे प्रवेश करता है, जहाँ वह परम पुरुष प्रेमी