Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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सुभाषित एवं नीतिशास्त्र ]
अन्तिम धर्म परीक्षा कथन सर्वेया
संवत् १८३६
धरम धरम कहै मरम न कोउ लहे, भरम में भूलि रहे कुल रूढ कीजीये | कुल रूट छोरे के भरम फंद तोरि के, सुमति गति फोरि कौ सुज्ञान दृष्टि दीजीये ||
दया रूप सोइ धर्म धर्म ते कटे है मर्म,
भेद जिन धरम पीयूष रस पीजीये । करि के परीक्ष्या जिनहरण धरम कीजीयें,
कसि के कसोटी जैसे चरण के लीजीये ।। ३५ ।।
अथ ग्रंथ समाप्त कथन सवैया इकतीसा उपदेस की छतोसी परिपूर्ण चतुर नर है जे माको भव्य रस पीजीये । मेरी है प्रलपति तो भी मैं कीए कवित, कविताह सौ हो जिन ग्रन्थ मान लीजी पै ॥
सरस है है बखाएप जौऊ प्रवसर जाए,
दोइ तीन या भैया सर्वेयर कहीजीयो । कहै जिनहरष संवत गुण सिसि भक्ष कीनी,
जु सुगा के सरवास मोकु दीजीयो ||३६|| इति श्री उपदेश छतीसी संपूर्ण ।
गवड पुछेरे गडि था, कवरण भले रौ देश । संपत हुए तो घर भलो नहीतर भलो विदेश ॥ सूरवलि तो सुहांमरणी, कर मोहि गंग प्रवाह मांडल तो प्रगणे पांरणी प्रथम प्रमाह ॥ २ ॥
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३४०१. उपदेश शतक - धानतराय । पत्र सं ० १४ | ० १२३४७३ इंच भाषा - हिन्दी | विषयसुभाषित । २० कोल X | ले० काल X 1 पू । वे० सं० ५२६ । च भण्डार ।
३४०२. कपूरप्रकरण पत्र सं० २४ । प्रा० १०x४ इंच । भाषा-संस्कृत विषय - सुभाषित | ५० काल X | ले० काल X | पूर्ण । वे० सं० १८६३ ।