Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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प्रन्थानुक्रमणिका ]
[ ८२१ ग्रन्थनाम
लेखक भाषा पृष्ठ सं० । ग्रन्थनाम लेखक भाषा पृष्ठ सं० जम्बुस्ताभीचरित्र नाथूराम (हि.) १६६ | जिनगुणसंपत्तिपूजा केशवसेन (ग०) ५३७ जम्बूस्वामीचरित्र
(हि.) ६६ | जिनगुणसंपत्तिपूजा नचन्द (सं०) ४७७, ५११ जम्बूस्वामीचौपई अकरायमल्ल (हि.) ७१० जिमगृगासंपत्तिपूजा
(सं०) ५३६ जम्बूस्वामीपूजा
| जिनगुणास्तवन
(सं०) ५७५ जयकुमार सुलोचना कथा - हि०) २२५ |
जिनचतुधियतिस्तोत्र भ. जिराचन्द्र (स) ५५७ जतिहुवरणरतोत्र अभयदेवसूरि (प्रा०, ७५४ | जिनचदिशतिस्तोत्र
(सं०) ४३३ जयपुरका प्राचीन ऐतिहासिकवर्णन - (हि.) ३७० जिन चरित्र ललितकीर्ति (म०) ६४५ जयपुर के मंदिरोकी वंदना स्वरूपचन्द हि०) ४३८, ५३८ | जिनचरित्रबा
(सं०) १६६ जयमाल [मालारोहण - (अप०) ५७३ | जिमचैत्यबंदना
(सं.) ३६० जयमाल
रायचन्द (हि.) ४७७ | जिनचल्यालयजयमाल रत्नभूषण (हि०) ५६४ जलगातारास शानभूषण । (हि०) ३६२ जिनचौर्ब सभवान्तररास विमलेन्द्रकीत्ति (१०) ५७८ जलयात्रा तीर्थोदकदानावधान - (स) ४७७
जिनदत्तचरित्र गुणभद्राचार्य (सं०) १६६ जलयात्रा जिनदास (स०, ६२३
जिनदत्तचरित्रभाषा पन्नालाल चौधरी (हि.) १७० जलयात्रापूजाविधान
(हि.) ४१७ जिनदत्त चौपई रल्ह कत्रि (हि.) ६८२ जलयात्राविधान पं० श्राशाधर । (स.) ४७७
जिनदत्तसूरिगीत सुन्दरमणि (हि.) ६१८ जलहरसेलाविधान
(हि.) जिनदत्तसूरि चौपई जयसागर उपाध्याय (हित) ६१८ जलालगाहाणी की वार्ता
(हि०) ४७७ जिनदर्शन
भूधरदास (हि०) ६०५ जातकसार नाथूराम जिनदर्शनस्तुति
(सं.) ४२४ जातकाभरण [जातकालङ्कार] - (हि.) ७६३
जिनदर्शनाष्टक
- (०) ३६० जातकवर्णन - (सं०) ५७४ जिनपच्चीसी
नवलराम • जाप्य इष्ट अनिष्ट [माला फेरने की विधि] - (सं०) ५५५
६६३, ७०४, ७२५, ७५५ जिनकुशलकी स्तुति साधुकीर्सि (हि.) ७७८ जिनपश्चीसी व अन्य संग्रह -- (हि०) ४३८ जिनकुशलसूरिस्तवन (हि.) ६१८ जिनपिंगलबंदकोश
(हि.) ७०६ जिनगुरणउद्यापन
-- (हि) ६३८ | जिनपुरन्दरव्रतपूजा जिनगुगापच्चीसी सेबगराम (हि.) ४४७ | जिनयूजापुरन्दरकथा खुशालचन्द (हिं०) २४४ जिनगुणमाला __ - (हि.) ३६० | जिनपूजापुरन्दरविधानकथा अमरकीति (अप०) २४६ जिनगुणसंपत्ति [मंडलचित्र] -
५२४ | जिनपूजाफलप्रातिकथा - (सं०) ४७८ जिनगुणसंपतिकथा - (सं०) २२५, २४६ | जिनपूजाविधान
(हि.) ६५२ जिनगुणसंपत्तिकथा ज्ञानसागर (हि०) २२८ | जिनपञ्जरस्तोत्र कमलप्रभाचार्य (सं०) ३६०, ४३२
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