Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ गुटका-संग्रह
हिन्दी
२१५. नेमिजिनंद वर्नन की
सकलकीसि २११. अब छाड्यो दाव वन्यो है भजले श्रीभगवान x २१७. रे मन जायगो कित ठौर
XXX
२१५. निश्य होरपहार सो होय
२१६. समझ मर जीवन थोरो
रूपचन्द
जगतराम
२२०. लग गई लगन हमारी २२१. अरे तो को कैसे २ कह समझायें
चन विजय
२२२. माधुरी जैनबाणो
जगतराम २२३. हम प्राये हैं जिमराज तोरे बन्दन को द्यानतराय २२४. मन भटक्यो र. अटक्यों
धर्मराल २२५. जैन धर्म नहीं कीना वरन देही पापी ब्रह्मजिनदास २२६, इन नैनों दा यही सुभाव २२७. नैना सफल भयो जिन दरसन पायो रामदास २२८. सब परि करम है परधान
रूपचन्द २२९. सब परि बल चेत झान
हर्षकीर्ति
२३०. रे मन जायगो कित ठौर
जगतराम
उठानतराय
जगतराम
जयकीर्ति
गुणचन्द
२३१. मुनि मन नेमजी के वेन २३२. तनक ताहि है री ताहि मापनो दरस २३३. चलते प्राण क्यों गयेरी काया २३४. बाजत रंग मृदग रसाला २३५. अब तुम जागो चेतनराया २३६. कैसा ध्यान धरया है २३७. करि मतम हित करि लं २३८. साहिब खेलत है चौगान २३६. देव मोरा हो ऋषभजी २४०. बंदी चरी हो पिया मैं
जगतराम
यानतराय
मरपाल
समयसुन्दर
द्यानतराम