Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटका-संग्रह १६.. जगत में सो देवन को देष १६१, मन लागों श्री नवकारसू
[ ५८७ १११
बनारसीदास
मुणवन्द्र
१६२. चेतन अब खोजिये
राम सारङ्ग
१९३. प्राये जिनवर मन के भावतें
राजसिंह
लालचन्द
नन्ददास
१९४. करो नाभि कबरजी को भारती १६५. री झांको वेद रटत ब्रह्मा रटत १६६. ते नरभव पाय कहा कियो २६७. अंखियां जिन दर्शन की प्यासी १६८, बलि जइये नेमि जिनंदकी १६६. सब स्वारथ के विरोग लोग २००. मुक्तागिरी बंदन जइये री .
माउ
विजयकत्ति
देवेन्द्रभूषण
सं० १९२१ में विजयकोति ने मुक्तागिरी की वंदना की थी।
२०१. उमाहो लाग रह्यो दरशन को
जगतराम
हिन्दी
२०२. नाभि के नंद बरण रज वंदौं
२०३. लामो प्रातमराम सों नेह
धानतराय
२०४. धनि मेरी प्राजकी घरी
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२०५. मेरो मन बस कीनो जिनराज
चन्द
२०६. धनि बो पीव पनि वा प्यारी
ब्रह्मदयाल
कर्मचन्द
२०७. प्राज मैं नौके दर्शन पायो २७६. देखो भाई माया लागत प्यारी २०१. कलिजुग में ऐसे ही दिन जाये
हर्षीत्ति
२१०, श्रीनेमि चले राजुल तजिके
२११. नेमि कंवर वर वींद विराजे
सुंदरभूषण
२१२. सेइ बड़भागो तेइ बड़भागी २१३. परे मन के के बर समझायो
२१४. कब मिलिहो नेम प्यारे
विहारीदास