Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटका-सम
तु मति सोहि न नीता रे बैरिन मै काहा वासरे।
भवभव दुखदाय करें तिनका कर विसास ॥
तिनका करहि विसास रे जिबरे तू मूड़ा नहि निमषु उरे । जम्मरण मरण जरा दुखदायक तिनस्यौं तू नित नेह करें। पागे ग्याता यापे दिष्ट्रा कहि समझाऊ कासरे। रे जीउ तू मत सोवहि न चीता बैंरिन में काहावास रे ।। ते जगमांहि जागे रे रहे अन्तरल्यवलाइ रे ।
केवल बिगत भयारे, प्रगटी जोति सुभाइ रे ।।
प्रगटी जोति सुभाइ रे जीवडे मिय्या रीण विहाणी।
स्वरभेद कारण जिन्ह मिलिया ते जग हवा वाणी।।
सुगुरु सुधर्म पंच परमेष्ठी तिनकै लागी पाय रे ।
कहै दरिगह जिन त्रिभुवन रो रहे अंतर त्यनलाइरे।।४।।
बनारसीदास
हिन्दी ले०काल १७३५ आसोज दी।
२४. वल्याण मंदिरस्तोत्रभाषा २५. निस्गि काण्ड गाथा २६. पूजा संग्रह
प्राकृत
हिन्दी
५४६०, गुटका सं० १०६ । पत्र सं० १५२ । प्रा० ६x४ इन्च | ले. काल १८३९ सावक्ष सुदी ६। अपूर्ण। दशा-जीर्णशीर्ण ।
विशेष-लिपि विकृत एव अशुद्ध है।
१. निश्वरदेव की कथा
x
२. कल्यामामन्दिरस्तोत्रभाषा
बनारसीदास
३. नेमिनाथ का बारहमासा
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अपूर्ण
२५-२६
२८
४. जकड़ी
नेमिचन्द ५. सवैया (सुख होत शरीरको दालिद भागि जाइ) x ६. कवित्त (धी जिनराज के ध्यान को उछाह मोहे लागे ७. निवर्षाकाण्डभापा
भगवतीदास
३०-३३